यहां की शाम समय बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।सी बीच से आप गोमती नदी और अरब सागर के संगम पर पहुंच सकते हैं । संगम क्षेत्र में शाम को सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें पानी में पड़ती है तो बड़ा ही सुंदर दिखता है। थोड़ी ही देर में रात हो जाती है और पूरा इलाका रंगीन लाइटों से जगमग आने लगता है रात में की रोशनी में जगमगाता द्वारकाधीश का मंदिर बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। सुदामा पुल की लाइट्स भी जल गई थी और यह बहुत ही सुंदर लग रहा था। सुदामा सेतु रात को 7:30 बजे बंद कर दिया जाता है इसके बाद आप सी बीच पर नहीं आ सकते। हम भी सुदामा पुल से वापस आ गए और मन्दिर के पास की मार्केट में जाकर कुछ खरीदारी की। यहां बन्धेज का काम स्थानीय स्तर पर काफी मात्रा में होता है उसकी खरीदारी की जा सकती है। अब रात होने लगी थी और हम भी थक गए थे तो हम कमरे पर आए और जल्दी ही सो गए हैं ।अब सुबह उठकर हमें नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और शिवराजपुर बीच जाना था।
सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ
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शनिवार, 22 जनवरी 2022
द्वारिका की शाम
द्वारिका में शाम बिताने के लिए समुद्र का किनारा बेहतरीन जगह है इसके लिए आप मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर स्थित गोमती नदी पर बने सुदामा सेतु पर प्रति व्यक्ति ₹5 एंट्री फीस देकर उस पार जा सकते हैं दूसरी ओर मीठे पानी के कुछ कुएं हैं साथ में ऊंट गाड़ी और ऊंट की सवारी भी उपलब्ध है जिसके द्वारा आप द्वारिका सी बीच पर पहुंच सकते हैं । अनिकेत ने पहली बार समुद्र देखा था ..तो उसका उत्साह कुछ अधिक ही था। बच्चों ने यहां ऊंट की सवारी का खूब लुत्फ उठाया साथ में रेत पर चलने वाली स्पोर्ट्स गाड़ी का भी हम सबने भरपूर आनंद लिया है । अब धीरे धीरे शाम होने लगी थी... पर एक बात ध्यान देने लायक है कि पश्चिमी छोर होने के नाते यहां सूर्य हमारे उत्तरी इलाके की तुलना में थोड़ी देर में डूबता है और थोड़ी देर में उगता भी है।
मंगलवार, 11 जनवरी 2022
द्वारिका के द्वारिकाधीश
द्वारिका के द्वारिकाधीश
भारत के चार धामों में से एक द्वारिका धाम व दो ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए जब हमने यात्रा का सपरिवार कार्यक्रम बनाया तो हमारे सामने कुछ बातें थी जो सभी यात्रा करने वाले के सामने आती हैं जैसे कि हम वहां आराम से कैसे पहुंच जाएं? कहां रुके? क्या-क्या देखें? इस सबका समाधान हमें सोशल मीडिया से मिल गया।
आदि शंकराचार्य ने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारो कोनों में चार मठों की स्थापना की थी। ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं जो इस प्रकार से हैं
श्रृंगेरी मठ- श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में
गोवर्धन मठ-गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में शारदा मठ- द्वारिका को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है जो द्वारिका गुजरात में है
ज्योतिर्मठ- ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में
आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी
इन चारों मठों के साथ ही यहाँ चार धाम भी हैं जहाँ हर सनातनी एक बार अवश्य जाना चाहता है
द्वारिका रेलवे स्टेशन, देश के सभी भागों से ट्रेन द्वारा जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से होकर आने वाली ट्रेनें इसको देश के अन्य भागों से जोड़ती हैं। यात्रा तिथि तय होते ही मैंने वाराणसी से ओखा की ट्रेन बुक कर ली जो द्वारिका होकर जाती है यह हमें सुबह द्वारिका उतार देती है। इस यात्रा के लिए मैंने क्रिसमस और नववर्ष की छुट्टियों को ध्यान में रखते हुए उस भीड़ से बचने के लिए इस तरह यात्रा प्लान किया कि हम 3 जनवरी के बाद वहां पहुंचें। पाँच घन्टे की देरी से जब हम द्वारिका पहुँचे तो स्टेशन से बाहर निकलते ही तमाम आटो रिक्शा वालों ने घेर लिया हैं कनानी जी ने पहले ही हमारे लिए धर्मशाला बुक कर दी थी तो हम सीधे अपनी धर्मशाला की ओर चल दिए। कनानी जी कमरे पर भी आए और हम लोगों के लिए चाय भी भेजवा दी। नवम्बर से फरवरी तक द्वारिका का मौसम घूमने के लिए आदर्श मौसम है ऐसा हमने पढ़ा था और वैसा मिला भी ... जनवरी की दोपहर में हाफ टी शर्ट और गुलाबी ठंड सी शाम उत्तर भारतीयों को आश्चर्य जनक ही लगेगा। नहाने के लिए भी गर्म पानी बहुत अधिक जरूरत नही पड़ती।
दोपहर 1 बजे से 5 बजे तक मन्दिर बन्द रहता तो हम नहा धोकर तैयार होने के बाद खाना खाने के लिए चल दिए क्योंकि 35 घन्टे की रेल यात्रा के बाद सबको तेज भूख लगी थी। द्वारिका के खाने की पहचान है गुजराती थाली जिसके साथ छाछ भरपूर मिलती है... हाँ हर खाने में आपको मीठापन जरूर मिलेगा जिससे हम उत्तर भारतीय जल्द ही ऊब जाते हैं पर विकल्प मौजूद होते हैं...यहाँ पंजाबी ढाबे भी मिलेंगे जो आपको तीखे चटपटे खाने की कमी नही होने देगें।
अब बात आती है कि द्वारिका गए हैं तो कहाँ कहाँ घूमे द्वारिका का पहला आकर्षण तो द्वारिकाधीश का मन्दिर ही है पर साथ ही यहाँ बच्चों के साथ मस्ती कर सकें ..ऐसी जगहें भी मौजूद हैं नही तो बच्चे ऊब ही जाएंगे। द्वरिका में भगवान कृष्ण को राजा की तरह पूजा जाता है इसलिए यहाँ द्वारिकाधीश हैं उनका भव्य मन्दिर राजा के निवास की तरह लगता भी हैं। दर्शन का तरीका यह है कि मन्दिर पहुँच कर गेट के बगल में स्थित काउन्टर पर जूते चप्पल दिए गए झोले में रखकर टोकन ले लीजिये फिर बगल के ही काउन्टर पर बैग और मोबाइल, कैमरा व चमड़े के बेल्ट आदि जमा करके दर्शन की लाइन में लग जाइए दर्शन आराम से हो जाते हैं... । यहाँ प्रभु को बालू शाही की तरह मिठाई, माखन, मिश्री के साथ तुलसी जी की माला चढ़ती है। मन्दिर में काले पत्थर का बने द्वारिकाधीश जी बड़े ही आकर्षक लगते हैं जिनकी आँखे अधखुली सी हैं। हम मन्दिर में शाम को पहुँचे तो आरती का समय था। हमारे साथ में कनानी जी ने अपने एक परिचित पुजारी जी को लगा दिया था उनके निर्देशन में भव्य दर्शन हुए । आरती में शामिल होने के बाद हम वहीं मन्दिर परिसर में ही बैठ गए... और मन्दिर को निहारते हुए कब घण्टों बीत गए पता भी नही चला। यहां बाहर से प्रसाद लेने की जरूरत नहीं है अंदर मंदिर परिसर में ही द्वारकाधीश मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रसाद के पैकेट दिए जाते हैं जिसका न्यूनतम मूल्य ₹100 है। यहाँ परिसर में बहुत से मंदिर है साथ ही यहाँ चार पीठों में से एक शारदा पीठ भी स्थित है जिसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने हाथों से की थी।इसे बड़े ही सुन्दर पत्थर की नक्काशी के साथ पुनःनिर्मित किया गया है।
एक रूचिकर विषय इस मन्दिर पर लगने वाली पताका भी है जिसे द्वारिकाधीश की पगड़ी माना जाता है जो दिन में 5 बार बदलती है हमारा ध्यान हर समय इस पर था और हमने एक बार इसको लगाते भी देख लिया जो बड़ा ही साहस वाला काम लगा। हमने अगली सुबह गोमती नदी की ओर स्थित मोक्ष द्वार से प्रवेश किया यह मन्दिर का दूसरा द्वार है यहाँ से निकलकर आप गोमती नदी व त्रिवेणी संगम की ओर जा सकते हैं।
रात की रोशनी में मन्दिर और भी सुन्दर व भव्य लगता है पूरा मन्दिर परिसर बहुत ही साफ़ सुथरा है । शेष अगली कड़ी में.....
दोपहर में द्वारिकाधीश मन्दिर(द्वारिका धाम)
श्री शारदापीठ द्वारिका
सोमवार, 10 जनवरी 2022
अयोध्या में एक दिन
अयोध्या में एक दिन-
सियाराम मय सब जग जानी...
अर्थात पूरे संसार में राम का वास है ... पर उनको देख पाने के लिए जो दृष्टि चाहिए वह हम जैसे तुच्छ मनुष्यों में कहाँ? अतः हम मानवों ने इसके लिए मन्दिर बनाए जिससे हम अपने इष्ट के दर्शन कर सकें।इसी भाव से हमारे दोस्तों ने भारतीय संस्कृति के आधार पुरूष श्री रामचन्द्र जी की जन्मभूमि व उनके पुनर्निर्मित हो रहे मन्दिर के दर्शन की इच्छा लिए अयोध्या चलने की योजना बनाई। मित्र अवनीश,अमृत व ज्ञानप्रकाश के साथ हम सभी जब ट्रेन से अयोध्या रेलवे स्टेशन पहुँचे तो भोर हो चुकी थी। रेलवे स्टेशन के बाहर आटो वाले नया घाट के लिए सवारी भर रहे थे तो हम भी "नया घाट" सरयू तट पर पहुँच गए।एक चौकाने वाली बात यह है कि फैजाबाद से अयोध्या के बीच ही इस नदी को सरयू कहते हैं वैसे इसका नाम घाघरा है जो बलिया व छपरा के बीच गंगा नदी में मिल जाती है। सरयू नदी में ही भगवान राम विलीन हुए थे वह जगह गुप्तार घाट के नाम से जानी जाती है जो अयोध्या फैजाबाद मार्ग पर स्थित है।
नया घाट बहुत सुन्दर व सुविधाजनक है इसी घाट के एक छोर से एक नहर निकाली गयी है जिसे राम की पैड़ी कहा जाता हैं यहाँ एक बड़ी खुली जगह है यहीं पर देव दीपावली को लाखों दीपक जलाए जाते हैं एक तरह से यह अयोध्या का मुख्य आयोजन स्थल है। पास ही रामकथा व लीला के लिए आधुनिक निर्माण भी है। सरयू स्नान व पूजन के बाद हम राम की पैड़ी चले गए । इस नहर के किनारे बहुतेरे प्रचीन मन्दिर हैं जिनका जीर्णोद्धार किया जा रहा है इसी में एक नागेश्वर नाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है। पैड़ी के दूसरे छोर से मुख्य शहर में वापस जाने के लिए आटो मिलते हैं। अयोध्या के मुख्य स्थान जैसे हनुमान गढ़ी, कनक भवन, दशरथ भवन, मणिदास की छावनी, राम जन्मभूमि परिसर आदि सभी जगहें अयोध्या जंक्शन से 2-4 किमी की परिधि में ही है। अपने रूकने की निर्धारित जगह पहुँच कर जोकि मित्र ज्ञानप्रकाश के नजदीकी रिश्तेदार की व्यवस्था थी हमने विश्राम किया। चारों तरफ़ पुलिस के जवान तैनात थे क्योंकि हम राम जन्मभूमि मन्दिर परिसर के एकदम निकट थे। यहाँ आप अपनी गाड़ी से नही आ सकते। स्थानीय लोग भी एक दो दिन पहले सूचित करके ही गाड़ी आदि मँगा सकते हैं।
यहाँ एक प्रथा है कि राम मंदिर जाने से पहले हनुमान जी के दर्शन करने चाहिए तो थोड़ा आराम करने के बाद हम हनुमान गढ़ी के बजरंगबली के दर्शन को चल दिए।हनुमान गढ़ी में हनुमान जी का 10वीं शताब्दी का बना मंदिर है जो उत्तर भारत में हनुमान जी के सबसे लोकप्रिय मंदिर परिसरों में से एक हैं। ।मुख्य मंदिर में, पवनसुत माता अंजनी की गोद में बैठे हुए हैं। कथा है कि रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तो हनुमानजी यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट रखा गया। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे।मन्दिर के प्रवेश द्वार के आस-पास लड्डू व पेड़े की बहुत सी दूकाने जहाँ काफी स्वादिष्ट प्रसाद मिलता है मुख्य रास्ते की दूकानों के रेट ज्यादा लगे ... थोड़ा हटकर लगी दुकानों के रेट सामान्य हैं।सुबह सुबह पहुँचने से हमें हर जगह कम भीड़ मिल रही थी तो हमने अच्छे से दर्शन कर लिए।
अब हमने राम जन्मभूमि मन्दिर परिसर जाना तय किया क्यों कि हमने सुना था कि यहाँ 11बजे से 2 बजे तक दर्शन बन्द रहता है। इसके लिए कड़ी जाँच(पेन,पर्स,मोबाइल,दवा,प्रसाद कुछ भी नही होना चाहिए) के बाद आप जब आगे बढ़ते हैं तो लगभग 10 मीटर के व्यू गैलरी से आप रामचन्द्र जी के मन्दिर के निर्माण कार्य को देख सकते हैं जो अभी नींव स्तर पर है... जिस जगह गर्भगृह में भगवान का विग्रह होगा वहाँ एक झण्डा लगा है। वहाँ से आगे बढ़ने पर आप इस समय रामलला के पूजन के लिए बनाए गए लकड़ी के मन्दिर के सामने पहुँच जाते हैं जहाँ रामलला अर्थात भगवान राम बालरूप में एक हाथ में लड्डू लिए विराजमान हैं। उनके दिव्य दर्शन के बाद आप परिक्रमा करते हुए वापस वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से प्रारम्भ किया था ... अब यहाँ भीड़ काफी बढ़ चुकी थी।
यहाँ से हम कनक भवन के लिए चल दिए इस भवन के बारे में कथा प्रचलित है कि कनक भवन राम विवाह के पश्चात माता कैकई के द्वारा सीता जी को मुंह दिखाई में दिया गया था। जिसे भगवान राम तथा सीता जी ने अपना निजी भवन बना लिया। उस समय का यह भवन चौदह कोस में फैली अयोध्या नगरी में स्थित सबसे दिव्य तथा भव्य महल था। समय बीतने पर यह भवन नष्ट हो गया, लेकिन शास्त्रों और प्राचीन धार्मिक इतिहास के आधार पर इसी स्थान को कनक भवन महल माना गया। वर्तमान के कनक भवन का निर्माण ओरछा राज्य के राजा सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि की देखरेख में कराया गया था। सन 1891 ई. को उनके द्वारा प्राचीन मूर्तियों की पुन:स्थापना के साथ ही राम सीता की दो नये विग्रहों की भी प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई।
अयोध्या के इन सभी जगहों पर जाने के रास्ते सुन्दर व साफ सुथरे हैं। बिजली के तारों को भूमिगत कर दिया गया है और रास्तों पर फिनिशिंग के साथ पत्थर लगाए गए हैं जिससे पैदल चलना अच्छा लगता है। अब तक दोपहर हो चुकी थी धूप तेज लग रही थी तो हमने भोजन करके आराम करना तय किया। दोपहर बाद हम राम जन्मभूमि मन्दिर कार्यशाला गए ..पूरे अयोध्या में ऐसी कई कार्यशालाएँ जहाँ राममन्दिर के निर्माण के लिए पत्थर तराशे जा रहे हैं।यहाँ बड़े बड़े पत्थरों पर नक्काशी की जा रही है सभी पत्थरों पर क्रम संख्या लिखी हुई है जिससे उन्हें यथा स्थान लगाया जा सके। शाम को हम सब फिर से नया घाट सरयू जी के तट पर पहुँच गए। अयोध्या में शाम बिताने के लिए राम की पैड़ी अच्छी जगह है। बन्दरों से बचते हुए भुने भुट्टे खाने की चुनौती भी हमने पूरी की। यहाँ आप 50 रू की दर से सरयू में बोटिंग का भी आनंद ले सकते हैं। सरयू तट पर होनी वाली आरती के लिए काफी संख्या में भीड़ होती है तो हमने भी आरती के लिए भी सीढियों पर जगह ले ली ...मौका देखकर मैंने व अवनीश जी ने फिर से सरयू में डुबकी लगा लिया और अगले एक घन्टे हम भव्य आरती के साक्षी बने।अब हम वापसी की मुद्रा में आ चुके थे ...चूँकि ट्रेन देर रात में थी तो हमने अपने विश्राम स्थल पर पहुँच कर आराम करने का सोचा।
जब आप अयोध्या में घूमते हैं तो आपको इसके प्राचीन नगर होने का एहसास हो जाएगा। न जाने कितनी बार उजड़ कर फिर बनी है यह नगरी... पर फिर भी आपको अपने राम का बोध कराने में सफल रहती है।बचपन से रामायण सुनते बड़े हुए हम सभी लोगों को उस कथानक के सूत्र अयोध्या में दिखाई पड़ जाते हैं। आधुनिक विकास की दौड़ में सभी शहर एक से होते जा रहे हैं ... पर अयोध्या अभी बचा है और उसको बचाए रखने की जरूरत भी है और यदि आपके पास अधिक समय न हो तो भी 'अयोध्या में एक दिन' बिताकर आपको आनन्द मिलेगा यह तय है।
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