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शनिवार, 22 जनवरी 2022

द्वारिका की शाम

 द्वारिका में शाम बिताने के लिए समुद्र का किनारा बेहतरीन जगह है इसके लिए आप मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर  स्थित गोमती नदी पर बने सुदामा सेतु पर प्रति व्यक्ति ₹5 एंट्री फीस देकर उस पार जा सकते हैं दूसरी ओर मीठे पानी के कुछ कुएं हैं साथ में ऊंट गाड़ी और ऊंट की सवारी भी उपलब्ध है जिसके द्वारा आप द्वारिका सी बीच पर पहुंच सकते हैं । अनिकेत ने पहली बार समुद्र देखा था  ..तो उसका उत्साह कुछ अधिक ही था। बच्चों ने यहां ऊंट की सवारी का खूब लुत्फ उठाया साथ में रेत पर चलने वाली स्पोर्ट्स गाड़ी का भी हम सबने  भरपूर आनंद लिया है । अब धीरे धीरे शाम होने लगी थी... पर एक बात ध्यान देने लायक है कि पश्चिमी छोर  होने के नाते यहां सूर्य हमारे उत्तरी इलाके  की तुलना में थोड़ी देर में डूबता है और थोड़ी देर में  उगता भी है।
यहां  की शाम समय बहुत ही खूबसूरत लग रही  थी।सी बीच से आप  गोमती नदी और अरब सागर के संगम पर पहुंच सकते हैं । संगम क्षेत्र में शाम को सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें पानी में पड़ती है तो बड़ा ही सुंदर दिखता है। थोड़ी ही देर में रात हो जाती है और पूरा इलाका रंगीन लाइटों से जगमग आने लगता है रात में की रोशनी में जगमगाता द्वारकाधीश का मंदिर बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। सुदामा पुल की लाइट्स भी जल गई थी और यह बहुत ही सुंदर लग रहा था। सुदामा सेतु रात को 7:30 बजे बंद कर दिया जाता है इसके बाद आप सी बीच पर नहीं आ सकते। हम भी सुदामा पुल से वापस आ गए और मन्दिर के पास की मार्केट में जाकर कुछ खरीदारी की। यहां बन्धेज का काम स्थानीय स्तर पर काफी मात्रा में होता है उसकी खरीदारी की जा सकती है।  अब रात होने लगी थी और हम भी थक गए थे तो हम कमरे पर आए और जल्दी ही  सो गए हैं ।अब सुबह उठकर हमें  नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और शिवराजपुर बीच जाना था।








अरब सागर व गोमती नदी का संगम


 


मंगलवार, 11 जनवरी 2022

द्वारिका के द्वारिकाधीश

द्वारिका के द्वारिकाधीश

 आदि शंकराचार्य ने  भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारो कोनों में चार  मठों की स्थापना की थी। ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं जो इस प्रकार से हैं
श्रृंगेरी मठ- श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में 
गोवर्धन मठ-गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में  शारदा मठ- द्वारिका को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है जो द्वारिका गुजरात में है
ज्योतिर्मठ- ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में 

आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी 
इन चारों मठों के साथ ही यहाँ चार धाम भी हैं जहाँ हर सनातनी एक बार अवश्य जाना चाहता है

भारत के चार धामों में से एक द्वारिका धाम व दो ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए  जब हमने यात्रा का सपरिवार  कार्यक्रम बनाया तो हमारे सामने कुछ बातें थी जो सभी यात्रा करने वाले के सामने आती हैं जैसे कि हम वहां आराम से कैसे पहुंच जाएं? कहां रुके? क्या-क्या देखें? इस सबका समाधान हमें सोशल मीडिया से मिल गया। 

 द्वारिका रेलवे स्टेशन, देश के सभी भागों से ट्रेन द्वारा जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से होकर आने वाली ट्रेनें इसको देश के अन्य भागों से जोड़ती हैं। यात्रा तिथि तय होते ही मैंने  वाराणसी से ओखा की ट्रेन बुक कर ली जो द्वारिका होकर जाती है यह हमें सुबह द्वारिका उतार देती है। इस यात्रा के लिए मैंने क्रिसमस और नववर्ष की छुट्टियों को ध्यान में रखते हुए उस भीड़ से बचने के लिए इस तरह यात्रा प्लान किया कि हम 3 जनवरी के बाद वहां पहुंचें।  पाँच घन्टे की देरी से जब हम द्वारिका पहुँचे तो स्टेशन से बाहर निकलते ही तमाम आटो रिक्शा वालों ने घेर लिया हैं कनानी जी ने पहले ही हमारे लिए धर्मशाला बुक कर दी थी तो हम सीधे अपनी धर्मशाला की ओर चल दिए। कनानी जी कमरे पर भी आए और हम लोगों के लिए चाय भी भेजवा दी। नवम्बर से फरवरी तक द्वारिका का मौसम घूमने के लिए आदर्श मौसम है ऐसा हमने पढ़ा था और वैसा मिला भी ... जनवरी की दोपहर में हाफ टी शर्ट और गुलाबी  ठंड सी शाम उत्तर भारतीयों को आश्चर्य जनक ही लगेगा। नहाने के लिए भी गर्म पानी बहुत अधिक जरूरत नही पड़ती।
 दोपहर 1 बजे से 5 बजे तक मन्दिर बन्द रहता तो हम नहा धोकर तैयार होने के बाद खाना खाने के लिए चल दिए क्योंकि 35 घन्टे की रेल यात्रा के बाद सबको तेज भूख लगी थी। द्वारिका के खाने की पहचान है गुजराती थाली जिसके साथ छाछ भरपूर मिलती है... हाँ हर खाने में आपको मीठापन जरूर मिलेगा जिससे हम उत्तर भारतीय जल्द ही ऊब जाते हैं पर विकल्प मौजूद होते हैं...यहाँ पंजाबी ढाबे भी मिलेंगे जो आपको तीखे चटपटे खाने की कमी नही होने देगें।

 अब बात आती है कि द्वारिका गए हैं तो कहाँ कहाँ घूमे द्वारिका का पहला आकर्षण तो द्वारिकाधीश का मन्दिर ही है पर साथ ही यहाँ बच्चों के साथ मस्ती कर सकें ..ऐसी जगहें भी मौजूद हैं नही तो बच्चे ऊब ही जाएंगे।  द्वरिका में भगवान कृष्ण को राजा की तरह पूजा जाता है इसलिए यहाँ द्वारिकाधीश हैं उनका भव्य मन्दिर राजा के निवास की तरह लगता भी हैं। दर्शन का  तरीका यह है कि मन्दिर पहुँच कर गेट के बगल में स्थित काउन्टर पर जूते चप्पल दिए गए झोले में रखकर टोकन ले लीजिये फिर बगल के ही काउन्टर पर बैग और मोबाइल, कैमरा व चमड़े के बेल्ट आदि जमा करके दर्शन की लाइन में लग जाइए  दर्शन आराम से हो जाते हैं... । यहाँ प्रभु को बालू शाही की तरह मिठाई, माखन, मिश्री के साथ तुलसी जी की माला चढ़ती है। मन्दिर में काले पत्थर का बने द्वारिकाधीश जी  बड़े ही आकर्षक लगते हैं जिनकी आँखे अधखुली सी हैं। हम  मन्दिर में शाम को  पहुँचे तो आरती का समय था। हमारे साथ में कनानी जी ने अपने एक परिचित पुजारी जी को लगा दिया था उनके निर्देशन में भव्य दर्शन हुए ।  आरती में शामिल होने के बाद हम वहीं मन्दिर परिसर में ही बैठ गए... और मन्दिर को निहारते हुए कब घण्टों बीत गए पता भी नही चला। यहां बाहर से प्रसाद लेने की जरूरत नहीं है अंदर मंदिर परिसर में ही  द्वारकाधीश मंदिर ट्रस्ट  द्वारा प्रसाद के पैकेट दिए जाते हैं जिसका न्यूनतम मूल्य ₹100 है। यहाँ परिसर में बहुत से मंदिर है साथ ही यहाँ चार पीठों में से एक शारदा पीठ भी स्थित है जिसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने अपने हाथों से की थी।इसे बड़े ही सुन्दर पत्थर की नक्काशी के साथ पुनःनिर्मित किया गया है।
               एक रूचिकर विषय इस मन्दिर पर लगने वाली पताका भी है जिसे द्वारिकाधीश की पगड़ी माना जाता है जो दिन में 5 बार बदलती है हमारा ध्यान हर समय इस पर था और हमने एक बार इसको लगाते भी देख लिया जो बड़ा ही साहस वाला काम लगा। हमने अगली सुबह गोमती नदी की ओर स्थित मोक्ष द्वार से प्रवेश किया यह मन्दिर का दूसरा द्वार है यहाँ से निकलकर आप गोमती नदी व त्रिवेणी संगम की ओर जा सकते हैं।
रात की रोशनी में मन्दिर और भी सुन्दर व भव्य लगता है पूरा मन्दिर परिसर बहुत ही साफ़ सुथरा है । शेष अगली कड़ी में.....


दोपहर में  द्वारिकाधीश मन्दिर(द्वारिका धाम)
शाम  को द्वारिकाधीश मन्दिर
रात के समय द्वारिकाधीश का मन्दिर
सुबह के  समय गोमती नदी में से द्वारिकाधीश  का मन्दिर

द्वारिका सी बीच से द्वारिकाधीश जी का मन्दिर
श्री शारदापीठ द्वारिका 

सोमवार, 10 जनवरी 2022

अयोध्या में एक दिन

अयोध्या में एक दिन-

सियाराम मय सब जग जानी...
 अर्थात पूरे संसार में राम का वास है ... पर उनको देख पाने के लिए जो दृष्टि चाहिए वह हम जैसे तुच्छ मनुष्यों में कहाँ? अतः हम मानवों ने इसके लिए मन्दिर बनाए जिससे हम अपने इष्ट के दर्शन कर सकें।इसी भाव से हमारे दोस्तों ने भारतीय संस्कृति के आधार पुरूष श्री रामचन्द्र जी  की जन्मभूमि व उनके पुनर्निर्मित हो रहे मन्दिर के दर्शन की इच्छा लिए अयोध्या चलने की योजना बनाई। मित्र अवनीश,अमृत व ज्ञानप्रकाश के साथ हम सभी जब ट्रेन से अयोध्या रेलवे स्टेशन पहुँचे तो भोर हो चुकी थी। रेलवे स्टेशन के बाहर आटो वाले नया घाट के लिए सवारी भर रहे थे तो हम भी "नया घाट" सरयू तट पर पहुँच गए।एक चौकाने वाली बात यह है कि फैजाबाद से अयोध्या के बीच ही इस नदी को सरयू कहते हैं वैसे इसका नाम घाघरा है जो बलिया व छपरा के बीच गंगा नदी में मिल जाती है। सरयू नदी में ही भगवान राम  विलीन हुए थे वह जगह गुप्तार घाट के नाम से जानी जाती है जो अयोध्या फैजाबाद मार्ग पर स्थित है। 
      नया घाट बहुत सुन्दर व सुविधाजनक है इसी घाट के एक छोर से एक नहर निकाली गयी है जिसे राम की पैड़ी  कहा जाता हैं यहाँ एक बड़ी खुली जगह है यहीं पर देव दीपावली को लाखों दीपक जलाए जाते हैं एक तरह से यह अयोध्या का मुख्य आयोजन स्थल है। पास ही रामकथा व लीला के लिए आधुनिक निर्माण भी है। सरयू स्नान व पूजन के बाद हम राम की पैड़ी चले गए । इस नहर के  किनारे  बहुतेरे प्रचीन मन्दिर हैं जिनका जीर्णोद्धार किया जा रहा है इसी में एक नागेश्वर नाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है। पैड़ी के दूसरे छोर से मुख्य शहर में वापस जाने के लिए आटो मिलते हैं। अयोध्या के मुख्य स्थान जैसे हनुमान गढ़ी, कनक भवन, दशरथ भवन, मणिदास की छावनी, राम जन्मभूमि परिसर आदि सभी जगहें अयोध्या जंक्शन से 2-4 किमी की परिधि में ही है। अपने रूकने की निर्धारित जगह पहुँच कर जोकि मित्र ज्ञानप्रकाश के नजदीकी रिश्तेदार की व्यवस्था थी हमने विश्राम किया। चारों तरफ़ पुलिस के जवान तैनात थे क्योंकि हम राम जन्मभूमि मन्दिर परिसर के एकदम निकट थे। यहाँ आप अपनी गाड़ी से नही आ सकते। स्थानीय लोग भी एक दो दिन पहले सूचित करके ही गाड़ी आदि मँगा सकते हैं। 
यहाँ एक प्रथा है कि राम मंदिर जाने से पहले हनुमान जी के दर्शन करने चाहिए तो थोड़ा आराम करने के बाद हम हनुमान गढ़ी के बजरंगबली के दर्शन को चल दिए।हनुमान गढ़ी में हनुमान जी का 10वीं शताब्दी का  बना मंदिर है जो उत्तर भारत में हनुमान जी के सबसे लोकप्रिय मंदिर परिसरों में से एक हैं। ।मुख्य मंदिर में, पवनसुत माता अंजनी की गोद में बैठे हुए हैं। कथा है कि  रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तो हनुमानजी यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट रखा गया। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे।मन्दिर के प्रवेश द्वार के आस-पास लड्डू व पेड़े की बहुत सी दूकाने जहाँ काफी स्वादिष्ट प्रसाद मिलता है मुख्य रास्ते की दूकानों के रेट ज्यादा लगे ... थोड़ा हटकर लगी दुकानों के रेट सामान्य हैं।सुबह सुबह पहुँचने से हमें हर जगह कम  भीड़ मिल रही थी तो हमने अच्छे से दर्शन कर लिए।

        अब हमने राम जन्मभूमि मन्दिर परिसर जाना तय किया क्यों कि हमने सुना था कि यहाँ 11बजे से 2 बजे तक दर्शन बन्द रहता है। इसके लिए कड़ी जाँच(पेन,पर्स,मोबाइल,दवा,प्रसाद कुछ भी नही होना चाहिए) के बाद आप जब आगे बढ़ते हैं तो लगभग 10 मीटर के व्यू गैलरी से आप रामचन्द्र जी के मन्दिर के निर्माण कार्य को देख सकते हैं जो अभी नींव स्तर पर है... जिस जगह गर्भगृह में भगवान का विग्रह होगा वहाँ एक झण्डा लगा है। वहाँ से आगे बढ़ने पर आप इस समय रामलला के पूजन के लिए बनाए गए लकड़ी के मन्दिर के सामने पहुँच जाते हैं जहाँ रामलला अर्थात भगवान राम बालरूप में एक हाथ में लड्डू लिए विराजमान हैं। उनके दिव्य दर्शन के बाद आप परिक्रमा करते हुए वापस वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से प्रारम्भ किया था ... अब यहाँ भीड़ काफी बढ़ चुकी थी।
            यहाँ से हम कनक भवन के लिए चल दिए  इस भवन के बारे में कथा प्रचलित है कि कनक भवन राम विवाह के पश्‍चात माता कैकई के द्वारा सीता जी को मुंह दिखाई में दिया गया था। जिसे भगवान राम तथा सीता जी ने अपना निजी भवन बना लिया। उस समय का यह भवन चौदह कोस में फैली अयोध्‍या नगरी में स्थित सबसे दिव्‍य तथा भव्‍य महल था। समय बीतने पर यह भवन नष्ट हो गया, लेकिन शास्त्रों और प्राचीन धार्मिक इतिहास के आधार पर इसी स्थान को कनक भवन महल माना गया। वर्तमान के कनक भवन का निर्माण ओरछा राज्‍य के राजा सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि की देखरेख में कराया गया था। सन 1891 ई. को उनके द्वारा प्राचीन मूर्तियों की पुन:स्थापना के साथ ही राम सीता की दो नये विग्रहों की भी प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई।

         अयोध्या के इन सभी जगहों पर जाने के रास्ते सुन्दर व साफ सुथरे हैं। बिजली के तारों को भूमिगत कर दिया गया है और रास्तों पर फिनिशिंग के साथ पत्थर लगाए गए हैं जिससे पैदल चलना अच्छा लगता है। अब तक दोपहर हो चुकी थी धूप तेज लग रही थी तो हमने भोजन करके आराम करना तय किया। दोपहर बाद हम राम जन्मभूमि मन्दिर कार्यशाला गए ..पूरे अयोध्या में ऐसी कई कार्यशालाएँ जहाँ राममन्दिर के निर्माण के लिए पत्थर तराशे जा रहे हैं।यहाँ बड़े बड़े पत्थरों पर नक्काशी की जा रही है सभी पत्थरों पर क्रम संख्या लिखी हुई है जिससे उन्हें यथा स्थान लगाया जा सके। शाम को हम सब फिर से नया घाट सरयू जी के तट पर पहुँच गए। अयोध्या में शाम बिताने के लिए राम की पैड़ी अच्छी जगह है। बन्दरों से बचते हुए भुने भुट्टे खाने की चुनौती भी हमने पूरी की। यहाँ आप  50  रू की दर से सरयू में बोटिंग का भी आनंद ले सकते हैं।  सरयू तट पर होनी वाली आरती के लिए काफी संख्या में भीड़ होती है तो हमने भी आरती के लिए भी सीढियों पर जगह ले ली ...मौका देखकर मैंने व अवनीश जी ने फिर से सरयू में डुबकी लगा लिया और अगले एक घन्टे  हम  भव्य आरती के साक्षी बने।अब हम वापसी की मुद्रा में  आ चुके थे ...चूँकि ट्रेन देर रात में थी तो हमने अपने विश्राम स्थल पर पहुँच कर आराम करने का सोचा। 

 जब  आप अयोध्या में घूमते हैं तो आपको इसके प्राचीन नगर होने का एहसास हो जाएगा। न जाने कितनी बार उजड़ कर फिर बनी है यह नगरी... पर फिर भी आपको अपने राम का बोध कराने में सफल रहती है।बचपन से रामायण  सुनते बड़े हुए हम सभी  लोगों को उस कथानक के सूत्र अयोध्या में दिखाई पड़ जाते हैं।  आधुनिक विकास की दौड़ में सभी शहर एक से होते जा रहे हैं ... पर अयोध्या अभी बचा है और उसको बचाए रखने की जरूरत भी है और यदि आपके पास अधिक समय न हो तो भी 'अयोध्या में एक दिन'  बिताकर आपको आनन्द मिलेगा यह तय है।




गुरुवार, 2 सितंबर 2021

उज्जैन यात्रा भाग-2

उज्जैन में आप जब महाकालेश्वर के दर्शन करके बाहर निकलते हैं तो  मुख्य गेट से दाएं मुड़कर थोड़ा आगे पैदल दूरी पर ही आपको रूद्रसागर स्थित  विक्रम टीला मिलेगा जहाँ सिंहासन पर विराजमान महाराज_विक्रमादित्य जी की प्रतिमा स्थापित है।विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।
        सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित किया था । उनके पराक्रम को देखकर ही उन्हें महान सम्राट कहा गया और आगे चलकर भारतीय इतिहास में "विक्रमादित्य" की उपाधि कई अन्य राजाओं ने भी धारण किया ,जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय प्रमुख थे।

                 विक्रम टीला पर प्रस्तर व ताम्रपत्र की 32 पुतलियाँ भी बनी हैं जो विक्रमादित्य के सिंहासन के किस्से से जुड़ी हुई हैं जिसे कई सदियों बाद  राजा भोज द्वारा  प्राप्त किया गया था।कहानियों की एक श्रृंखला भी उनके सिंहासन पर बैठने के प्रयासों के बारे में है जिसे हम शायद दूरदर्शन पर सिंहासन बत्तीसी नाम से देख चुके हैं।  इस सिंहासन में 32 पुतलियां लगी हुई थीं, जो बोल सकती थीं और राजा को चुनौती देती हैं कि राजा केवल उस स्थिति में ही सिंहासन पर बैठ सकते हैं, यदि वे उनके द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी में विक्रमादित्य की तरह उदार हैं। इससे विक्रमादित्य की 32 कोशिशें (और 32 कहानियां) सामने आती हैं और हर बार भोज अपनी हीनता स्वीकार करते हैं। अंत में पुतलियां उनकी विनम्रता से प्रसन्न होकर उन्हें सिंहासन पर बैठने देती हैं।इसके अतिरिक्त विक्रमादित्य के नवरत्नों की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त विक्रम टीला पर महाराज विक्रमादित्य की मोहर,विक्रम चक्र व उनकी प्रतिकृति भी लगी है
महाकाल की नगरी उज्जैन में महाराज विक्रमादित्य की आराध्य देवी 'हरसिद्धि माता' का मन्दिर है।
शिवपुराण के अनुसार माता सती की कोहनी यहाँ गिरी थी।इस मन्दिर में छत में 'श्री यन्त्र' भी स्थापित है और कहते हैं यही असल शक्तिपीठ है। तान्त्रिक परम्परा में इस मन्दिर को सिद्धपीठ माता कहा गया है।
तेरहवीं शताब्दी के ग्रन्थों में हरसिद्धि मन्दिर का उल्लेख है परन्तु वर्तमान मन्दिर मराठा कालीन है। मन्दिर में स्थित दोनों दीपस्तम्भ मराठा शैली के हैं। जले तेल से चिकने हो चुके दीपस्तम्भ पर दीपक कैसे जलाए जाते होंगे यह उत्कण्ठा तब समाप्त हुई जब शाम को इनका जलना देखा।

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

गुप्ताधाम की यात्रा

 वर्ष 2020 दिसम्बर  महीने  के आखिर, में एक सुबह डिम्पी भाई ने फोन किया कि सर जी गुप्ताधाम चलेंगे तो मैने हाँ करने में देर नही की क्यों कि कोरोना की पहली लहर के बाद यह इस यात्रा की चर्चा ने एक अलग तरह का उत्साह ला दिया। मित्रों द्वारा उनकी पिछली गुप्ताधाम यात्रा के संस्मरण सुनकर वैसे भी उत्सुकता चरम पर थी .. निर्धारित योजना के अनुसार दिसंबर की एक ठंडी सुबह  करीब पाँच बजे हम एकत्र हो गए ... इस  यात्रा के  टीम लीडर डिम्पी भाई ने ले जाये जाने वाली सभी सामग्री को  हम सबमें बराबर रूप से बाँट दिया क्योंकि गुप्ताधाम में आपको मेले लगने वाले दिनों को छोड़ अन्य दिनों में रात रूकने पर अपने खाने की चीजें ले जानी पड़ेगी हाँ पकाने को बर्तन मिल जाएंगे। समय पर हमारी गाड़ी आ गई और अवनीश जी व अन्य के हर हर महादेव के नारे से हमने अपनी यात्रा शुरू कर दी। पहले हम यह जान लेते हैं कि जहाँ हम जा रहे थे अर्थात गुप्ताधाम की गुफ़ा है कहाँ??
विंध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा (Gupta Dham Gufa) की प्राचीनता के बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. इसकी बनावट को देखकर यह एक प्राकृतिक गुफ़ा लगती है।इसके बारे में पौराणिक कथा यह है कि भस्मासुर से बचने के लिए भगवान भोलेनाथ ने इसी गुफ़ा में शरण ली थी।
बिहार के रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में 
जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस गुप्ताधाम गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं। हम  करीब  सुबह 10 बजे तक चेनारी बाजार तक पहुँच गए थे यहाँ से हमने हरी सब्जियां व पानी की बोतलें ली और उगहनी घाट से चढाई करके 13 किमी दूर स्थित गुप्ताधाम की ओर जाने के लिए चल पड़े । उगहनी घाट के निकट ही स्थित बाबा के आश्रम में गाड़ी खड़ी करने के बाद हमने चढ़ाई शुरू की...यहाँ  कोई स्पष्ट सड़क नही है  बल्कि यह एक स्थानीय गाँव वालों के आने-जाने से बनी पथरीली पगडंडी है आपको उसी पर चढ़ कर जाना है।  डिम्पी भाई ने हम सब के लिए जंगल से लाठियाँ काट दी जिससे चढ़ना आसान हो गया।
   गुप्ता धाम की गुफ़ा तक  पहुँचने के दौरान आप दुर्गावती नदी को कई बार पार करते हैं बरसात के मौसम में इसमें काफी पानी होता है पर इस समय नदी में पानी कम था जंगल की खूबसूरती ने हम सबका मन मोह लिया था...उगहनी घाट से गुप्ताधाम के 13 किलोमीटर के रास्ते के बीच में आपको भुड़कुड़ा गाँव मिलता हैं जहाँ पानी मिल जाता है कुछ घर आपको सामान्य मूल्य पर खोआ व चाय आदि उपलब्ध करा देगें पहाड़ी गायों के दूध से बनी यह सामग्री कुछ अलग ही स्वाद देती है । लगभग  पांच पहाड़ियों की चढाई करने के बाद हम लोग सुग्गाखोह के मुहाने पर पहुंच गए... इस यात्रा में सुग्गाखोह की चढ़ाई और उतराई एक बड़ी चुनौती है सुग्गाखोह में  साखू के वृक्ष प्रमुखता से दिख रहे थे यह एक घना जंगल है जिसमें ढेरों तोते रहते हैं। सुग्गाखोह के आखिरी छोर पर ही गुप्ताधाम की गुफ़ा है... यहां पहुंचने तक हम थक कर चूर हो चुके थे...तो वहीं दुर्गावती नदी के किनारे हमनें कुछ जलपान किया और थोड़ी ही देर में गुप्ताधाम की गुफ़ा तक पहुँच गए।

 गुप्ता धाम की गुफ़ा तक पहुँचने तक शाम हो चुकी थी और हमने  गुफ़ा से नजदीक ही डिम्पी भाई द्वारा लाए गए कैम्प को लगा लिया। वहाँ से थोड़ी दूर पर एक हैंडपम्प भी था। सभी लोगों ने चूल्हा बनाना और लकड़ियां जुटाना शुरू कर दिया...थोड़ी ही देर में हमारी आग जल चुकी थी और हम सब लोग आग किनारे बैठकर खाना बनाने की तैयारी करने लगे... सुनील जी का ग्रुप भी हमारे साथ आ मिला और सबका भोजन साथ ही बनने लगा...डिम्पी भाई की पाक कला को हम सब जानते ही थे । जंगल से लाई लकड़ियों पर मदन जी ने  हाथ से बनी रोटियाँ सेकनी शुरू की वहीं हमसब ने खाना शुरू कर दिया और खाने के स्वाद को तो शब्दों में बताया ही नही जा सकता  ... जंगल के सन्नाटे में कैम्प लगाना और रात बिताना अविस्मरणीय पल था। इसी बीच मैने घन्टे की आवाज़ सुनी तो गुफ़ा के मुहाने पर पहुंच गया जहाँ आरती हो रही...नंगे पैर पत्थर पर खड़े होने पर काफी ठंड लग रही थी। आरती खत्म होने के बाद गुफ़ा में थोड़ी दूर घुसने पर देखा कि अन्दर काफी गर्मी थी जबकि बाहर अच्छी खासी ठंड थी।
   हमारे कैम्प में पाँच लोग आराम से सो सकते थे तो हमने अपना सामान भी अन्दर रख लिया और कैम्प में चेन बन्द कर सोने की कोशिश करने लगे..बहुत ठंड लग रही थी किसी तरह नींद आ ही गई..भोर में चार बजे के आस-पास कैम्प की दीवारें गीली सी हो गई थी जिससे नींद टूट गयी...डिम्पी भाई ने फिर बाहर की आग को तेज किया तो हम निकलकर आग के पास आ गए... बाहर बहुत ठंड थी लेकिन आग भरपूर थी तो थोड़ी ही देर में हमारा शरीर गर्म हो गया। पहाड़ों के पीछे से सूर्य की किरणों के आने तक हम वहीं बैठे रहे।सूर्य के उगने पर घाटी पल पल अपने रंग बदल रही थी।वहीं आग के सामने ही हमने चाय और फ्रेश होकर गुफ़ा में दर्शन की तैयारी करने लगे।
  एक बहुत उँचे से पहाड़ की तले में स्थित गुफ़ा  में शंकर भगवान का विग्रह द्वार से लगभग 200 से 250 मीटर अन्दर है जिससे वहाँ आक्सीजन की कमी रहती है अन्य मौसम में तो आप आराम से दर्शन कर सकते हैं पर बरसात के मौसम में गुफ़ा के छिद्रों में पानी भर जाने से हवा का प्रवाह कम ही जाता है और लोग बताते हैं कि दम घुटने के कारण गुफ़ा के अन्दर जाना संभव नही होता।
हमने गुफ़ा के अन्दर प्रवेश शुरू किया तो आरती का समय होने के कारण पुजारी जी भी साथ चले।गुफ़ा में  प्रकाश के लिए जेनेरेटर से बल्ब की व्यवस्था है व आक्सीजन के लिए एक मोटी सीमेंट पाईप भी गुफ़ा में ले जायी गई है। पूरी गुफ़ा में पानी रिसता रहता है। यह गुफ़ा एक कन्दरा है..भूमिगत जल के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों में सबसे महत्वपूर्ण स्थलाकृति कन्दरा है । इनका निर्माण घुलन क्रिया तथा अपघर्षण द्वारा होता है । ये ऊपरी सतह के नीचे एक रिक्त स्थान होती है तथा इनके अन्दर निरन्तर जल का प्रवाह होता रहता है । इस तरह की कन्दरा में जल के टपकने से कन्दरा की छत के सहारे चूने का जमाव लटकता रहता है, जिसे ‘स्टैलेक्टाइट’ कहते हैं । कन्दरा के फर्श पर चूने के जमाव से निर्मित स्तंभ ‘स्टैलेग्माइट’ कहलाता है । इन दोनों के मिल जाने से कंदरा स्तंभ (Cave Pillers) का निर्माण होता है ।
आपको गुप्ताधाम की गुफ़ा में हर जगह ऐसी आकृतियां मिलेंगी।
 अन्दर भगवान शिव के विग्रह तक पहुँचकर हमने आरती व पूजन किया। गुफ़ा से बाहर आकर हमने नाश्ता किया.. अब वापसी की तैयारी होने लगी तो थोड़ी दूर स्थित शीतल कुण्ड जाने का कार्यक्रम बन गया । यहाँ झरने व कुण्ड दृश्य बड़ा ही भव्य है।अब वापसी का समय था और जब वापस हम उगहनी घाट पहुँचे अन्धेरा हो चुका था व हम सभी थक कर चूर हो चुके थे तो गाड़ी में बैठकर घर आने की यात्रा शुरू हो गयी।



 
   

मंगलवार, 9 मार्च 2021

उज्जैन यात्रा भाग-1

पिछले एक वर्ष की परिस्थिति ने हमारी रेल यात्राओं पर लगाम लगा के रखा था...इसलिए जब मौका मिला तो हमने अचानक ही सपरिवार  यह कार्यक्रम बना डाला।
   पुराणों के अनुसार  भगवान शिव जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ये संख्या में  12 है। इनमें से हमारे उत्तर प्रदेश के एकमात्र #ज्योतिर्लिंग, बनारस में काशी विश्वनाथ जी हैं।
      मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में #महाकालेेश्वर के रूप में और दूसरा #ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के संयुक्त रूप में....और हमने यहीं जाना तय किया।

उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी या शिप्रा नदी के किनारे पर बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। आज जो नगर उज्जैन नाम से जाना जाता है वह अतीत में अवंतिका या उज्जयिनी के नाम से जाना जाता था।
       ॐकारेश्वर  मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।यहां  ॐकारेश्वर में  नर्मदा नदी पर बने बाँध के पास दो मंदिर स्थित हैं ॐकारेश्वर व ममलेश्वर।
हमने अपनी यात्रा बनारस से शुरू की और पहले उज्जैन पहुँचे...महाकालेश्वर मन्दिर के आसपास बहुत अच्छे सामान्य बजट  के होटल उपलब्ध हैं हमने भी मन्दिर के करीब ही एक होटल चुना और  एप से  आन-लाइन नामांकन कराने के बाद तैयार होकर मन्दिर पहुँच गए। इस मन्दिर में भीड़ को संभालने व सभी को भावपूर्ण दर्शन कराने की व्यवस्था शानदार है। इस मन्दिर में आप दर्शन से संतुष्ट होंगे यह तय है।सौभाग्य से हम जब पहुँचे तब शाम के श्रृंगार व आरती का समय हो गया था और हम भव्य आरती के साक्षी  बन गए।
 यहाँ परिसर  में बहुत से मन्दिर हैं साथ ही मन्दिर ट्रस्ट की तरफ से  परिसर में ही भुगतान से प्रसाद के रूप में बेसन का लड्डू भी मिलता है जो अत्यंत स्वादिष्ट होता है। सब कुछ देखकर जब हम बाहर निकले तो मुख्य गेट के बगल में एक काउन्टर लगा था जिसमें निर्माल्य से बनी सुगन्धित अगरबत्ती मिल रही थी हमने भी ले लिया...इतनी सुगन्धित निकली कि घर आने पर लगा कि और भी लेना चाहिए था।

 रात में खाना खाकर व रबड़ी का आनंद लेने के बाद हम सोने चले गए क्योंकि सुबह फिर हमें महाकाल का दर्शन करना था और उसके बाद  ॐकारेश्वर जाना तय किया था।
  इस समय सुबह भस्म आरती में दर्शनार्थियों को अनुमति नही थी इसलिए हमने आराम से उठकर दर्शन किया और फिर वहाँ से हम हरसिद्धि माता और विक्रम टीला गए। मन्दिर के सामने स्थित रूद्रसागर कुण्ड  की हालत खराब है उम्मीद है आगे इस पर काम होगा।
  जब होटल वापस पहुंचे तो गाड़ी आ चुकी थी और हम ॐकारेश्वर के लिए चल दिए जो यहाँ से लगभग 136 किमी  दूर था।ॐकारेश्वर जाने के रास्ते में आपको ग्रामीण मध्य प्रदेश के दर्शन होते हैं।घाट की पहाड़ियों पर चढ़कर फिर उतरने के बाद आप नर्मदा नदी की घाटी में पहुँचते हैं जहाँ एक द्वीप पर आमने सामने ॐकारेश्वर व ममलेश्वर मौजूद हैं। यहाँ आपको अत्यंत  साफ स्वच्छ व निर्मल नर्मदा के दर्शन होते हैं। जब हम पहुँचे तो वह 'माघ पूर्णिमा' का दिन था तो मुझे अपना प्रिय काम यानि नर्मदा  जी में डुबकी मारना ही था...गंगा जी  के किनारे पैदा होने वाला आज नर्मदा के दर्शन व स्नान से स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा था ।
 यह स्थान अति प्राचीन विन्ध्य पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है यहाँ नदी में नर्मदेश्वर शिवलिंग मिलते हैं...हमने भी ढूंढा पर मिले नही
स्नान के बाद मैंने  घर लाने के लिए नर्मदा जी जल का जल लिया और एक बोट से हम ॐकारेश्वर के दर्शन के लिए चल दिए... आप झूला पुल से भी जा सकते हैं।भीड़ काफी थी फिर भी एक घण्टे में हमने दर्शन पा लिया। ॐकारेश्वर मन्दिर में प्राकृतिक स्वरूप के शिवलिंग हैं ... वापसी हमें बोट ने ममलेश्वर जाने के घाट पर उतार दिया... यहाँ उतनी भीड़ नही थी क्योंकि यह मन्दिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और यहाँ अनुष्ठान आदि नही होते इसलिये हमने आराम से दर्शन कर लिया...यहाँ  शिवलिंग स्वरूप भी  ॐकारेश्वर मन्दिर के प्राकृतिक स्वरूप की तरह ही हैं।
 दर्शन के बाद हम वापस उज्जैन के लिए चल दिए। 
मध्य प्रदेश के शहरों में आप जाए तो बेसन की बनी सेव नमकीन जरूर खरीदे यकीन माने गुणवत्ता शानदार होती है। उज्जैन एक साफ सुथरा शहर है और हमारा बहुत कुछ घूमना रह भी गया ...पर यह शहर आपको दोबारा बुला लेगा यह तय है।




















रविवार, 20 दिसंबर 2020

गंगोत्री धाम यात्रा : खूबसूरत रास्तों की मंजिल


इस यात्रा वृत्तान्त के नाम से तो यह गंगोत्री धाम की यात्रा लग रही है पर सच कहा जाए तो यह  रास्ते में मिलने वाले पड़ावों के लिए भी की गयी यात्रा है। मैं जब भी उत्तराखंड की यात्रा करता हूँ तो मन में धार्मिकता का भाव ही  प्रबल रहता है पर कब पहाडों का सौन्दर्य मन मस्तिष्क पर छा जाता है पता भी नही चलता ।

नीरज जाट जी की गयी  हर्षिल -धराली यात्रा व वाधवा जी के हर्षिल यात्रा वृत्तांत ने मन में इस यात्रा की इच्छा पैदा कर दी थी । हम शिक्षकों को मई -जून में मिलने वाली छुट्टियाँ ही घूमने का अच्छा मौका देती हैं तो मैंने भी उसी समय के हिसाब से तैयारी शुरू कर दी और अन्य तीन मित्र अवनीश  ,रमेश  व दिनेश के साथ  वाराणसी से हरिद्वार तक का ट्रेन का आरक्षण करा लिया।

जब हम  3 जून 2019 को हरिद्वार पहुँचे तो अभूतपूर्व भीड़ से सामना हुआ ...लगा जैसे पूरा देश हरिद्वार में उमड़ पड़ा है किसी तरह एक धर्मशाला मिली । 'हर की पैडी' पर स्नान कर व शाम की आरती देखकर हम देर तक गंगा जी के किनारे घूमते रहे । अगली  सुबह 4 जून को  हमारी गाड़ी आना तय हुई थी और हम चारो की यात्रा प्रारंभ होनी थी।

सुबह हम  फिर घाट पर नहा धोकर तैयार हो गए और ड्राइवर के बताए निर्धारित स्थान भीमगोडा बैराज पर पहुँच गाड़ी में सवार, हो गए। वहीं हमने कुछ केले, अखबार व पानी भी गाड़ी में रख लिया। अखबार से पता चला कि कल 'सोमवती अमावस्या' का बड़ा स्नान पर्व था और हरिद्वार में 4 लाख लोगों ने स्नान किया। अब तो भविष्य की सभी उत्तराखंड की यात्राओं में इस तिथि का ध्यान रखेंगे।

हरिद्वार से उत्तरकाशी के लिए मुख्य प्रचलित रास्ता ॠषिकेश, नरेन्द्रनगर, चम्बा व चिन्यालिसौड़
होकर जाता है जिस पर चारधाम सड़क परियोजना का काम चल रहा है एक दूसरा रास्ता देहरादून मसूरी होते हुए चिन्यालिसौड़ जाकर मिलता है हम उसी रास्ते पर चल पड़े । यह रास्ता पहले वाले की तुलना में थोडा लम्बा पर कम ट्रैफिक व वाला था । ड्राइवर  के लिए  यह रास्ता नया था तो गूगल मैप का सहारा लेना पड़ रहा था ..इस रास्ते में मसूरी लेक पड़ रही थी तो वही हमनें गाड़ी रोकी । यहां एक जल धारा को रोककर एक छोटा तालाब बनाया गया है जिसमें छोटी पैर चालित बोट हैं लेक के किनारे रैस्टोरेंट है बगल में जिप लाईन एडवेंचर व पैराग्लाईडिग भी हो रही थी उत्तराखंड में ऐसे एडवेंचर पार्क अब जगह जगह मिलने लगे हैं। लेक से एक रास्ता मसूरी चला जाता है दूसरा न्यू बाईपास बनाते धनोल्टी होते चंबा। उस दिन अत्यधिक भीड़ के कारण मसूरी में वाहनों का प्रवेश रोका गया था।अब मेरे दिमाग में धनोल्टी घूम रहा था क्योंकि मैंने इसके बारे में पढ़ रखा था पता नही हमने कौन सा मोड़ मिस किया और  भूलवश ही सही हम धनोल्टी के रास्ते पर बढ़ चले । धनोल्टी आते ही हरियाली बढ़ने लगी वातावरण में नमी बढ़ने लगी । हिमालय में जिन स्थानों पर उँचाई व कम  धूप का योग बनता है वहाँ हरियाली  व सुन्दरता बढ़ जाती हैं हमने धनोल्टी ईको पार्क के पास गाड़ी रोकी व 50 रू का टिकट काटाकर पार्क में  घुस गए। लोगों ने पहाड़ की ढलानों पर पार्क विकसित कर लिए हैं जिसमें  विभिन्न फूल,  घास के मैदान , एडवेंचर गेम, उँचे देवदार के पेड़ व बैठने की जगहें हैं । कुल मिलाकर सुन्दर दृश्य मिलता है। रास्ते की थकान मिटाने व बच्चों के लिए अच्छी जगह है। उस समय वहाँ एक स्कूल के बच्चे आए थे जो जिन्हें एडवेंचर गेम व क्विज़ के पुरस्कार दिए जा रहे थे। रमेश जी ने कहा कि यहाँ बच्चों को लेकर आने लायक है।

अब यहाँ से आगे बढने पर गड़बड़ी शुरू हुई ..अब गूगल मैप से पता चल रहा था कि हमने चिन्यालिसौड़ का रास्ता छोड़ दिया है एक दो गाड़ियों से पूछा भी वह कुछ बता नही पा रहे थे पर मुझे चंबा का रास्ता स्पष्ट दिख रहा था तो ड्राइवर को उसी रास्ते पर बढ़ने को कहा।बाद में मैंने हमारी गलती पकड़ी कि हमने  सुवाखोली तिराहे से चंबा वाली रोड पकड़ ली थी जबकि हमें चिन्यालिसौड़ के लिए सीधे जाना था। खैर यह गलती ठीक ही रही धनोल्टी  घूम लिया हमने ‍‌|

हर की पैड़ी पर आरती का दृश्य 




मसूरी लेक 


मसूरी लेक बनाने वाली जलधारा 


एड्वेंचेर पार्क 

ईको पार्क के अन्दर
पार्क का उपरी भाग
पार्क में हम चार