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गुरुवार, 2 सितंबर 2021

उज्जैन यात्रा भाग-2

उज्जैन में आप जब महाकालेश्वर के दर्शन करके बाहर निकलते हैं तो  मुख्य गेट से दाएं मुड़कर थोड़ा आगे पैदल दूरी पर ही आपको रूद्रसागर स्थित  विक्रम टीला मिलेगा जहाँ सिंहासन पर विराजमान महाराज_विक्रमादित्य जी की प्रतिमा स्थापित है।विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।
        सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित किया था । उनके पराक्रम को देखकर ही उन्हें महान सम्राट कहा गया और आगे चलकर भारतीय इतिहास में "विक्रमादित्य" की उपाधि कई अन्य राजाओं ने भी धारण किया ,जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय प्रमुख थे।

                 विक्रम टीला पर प्रस्तर व ताम्रपत्र की 32 पुतलियाँ भी बनी हैं जो विक्रमादित्य के सिंहासन के किस्से से जुड़ी हुई हैं जिसे कई सदियों बाद  राजा भोज द्वारा  प्राप्त किया गया था।कहानियों की एक श्रृंखला भी उनके सिंहासन पर बैठने के प्रयासों के बारे में है जिसे हम शायद दूरदर्शन पर सिंहासन बत्तीसी नाम से देख चुके हैं।  इस सिंहासन में 32 पुतलियां लगी हुई थीं, जो बोल सकती थीं और राजा को चुनौती देती हैं कि राजा केवल उस स्थिति में ही सिंहासन पर बैठ सकते हैं, यदि वे उनके द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी में विक्रमादित्य की तरह उदार हैं। इससे विक्रमादित्य की 32 कोशिशें (और 32 कहानियां) सामने आती हैं और हर बार भोज अपनी हीनता स्वीकार करते हैं। अंत में पुतलियां उनकी विनम्रता से प्रसन्न होकर उन्हें सिंहासन पर बैठने देती हैं।इसके अतिरिक्त विक्रमादित्य के नवरत्नों की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त विक्रम टीला पर महाराज विक्रमादित्य की मोहर,विक्रम चक्र व उनकी प्रतिकृति भी लगी है
महाकाल की नगरी उज्जैन में महाराज विक्रमादित्य की आराध्य देवी 'हरसिद्धि माता' का मन्दिर है।
शिवपुराण के अनुसार माता सती की कोहनी यहाँ गिरी थी।इस मन्दिर में छत में 'श्री यन्त्र' भी स्थापित है और कहते हैं यही असल शक्तिपीठ है। तान्त्रिक परम्परा में इस मन्दिर को सिद्धपीठ माता कहा गया है।
तेरहवीं शताब्दी के ग्रन्थों में हरसिद्धि मन्दिर का उल्लेख है परन्तु वर्तमान मन्दिर मराठा कालीन है। मन्दिर में स्थित दोनों दीपस्तम्भ मराठा शैली के हैं। जले तेल से चिकने हो चुके दीपस्तम्भ पर दीपक कैसे जलाए जाते होंगे यह उत्कण्ठा तब समाप्त हुई जब शाम को इनका जलना देखा।