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मंगलवार, 31 अगस्त 2021

गुप्ताधाम की यात्रा

 वर्ष 2020 दिसम्बर  महीने  के आखिर, में एक सुबह डिम्पी भाई ने फोन किया कि सर जी गुप्ताधाम चलेंगे तो मैने हाँ करने में देर नही की क्यों कि कोरोना की पहली लहर के बाद यह इस यात्रा की चर्चा ने एक अलग तरह का उत्साह ला दिया। मित्रों द्वारा उनकी पिछली गुप्ताधाम यात्रा के संस्मरण सुनकर वैसे भी उत्सुकता चरम पर थी .. निर्धारित योजना के अनुसार दिसंबर की एक ठंडी सुबह  करीब पाँच बजे हम एकत्र हो गए ... इस  यात्रा के  टीम लीडर डिम्पी भाई ने ले जाये जाने वाली सभी सामग्री को  हम सबमें बराबर रूप से बाँट दिया क्योंकि गुप्ताधाम में आपको मेले लगने वाले दिनों को छोड़ अन्य दिनों में रात रूकने पर अपने खाने की चीजें ले जानी पड़ेगी हाँ पकाने को बर्तन मिल जाएंगे। समय पर हमारी गाड़ी आ गई और अवनीश जी व अन्य के हर हर महादेव के नारे से हमने अपनी यात्रा शुरू कर दी। पहले हम यह जान लेते हैं कि जहाँ हम जा रहे थे अर्थात गुप्ताधाम की गुफ़ा है कहाँ??
विंध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा (Gupta Dham Gufa) की प्राचीनता के बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. इसकी बनावट को देखकर यह एक प्राकृतिक गुफ़ा लगती है।इसके बारे में पौराणिक कथा यह है कि भस्मासुर से बचने के लिए भगवान भोलेनाथ ने इसी गुफ़ा में शरण ली थी।
बिहार के रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में 
जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस गुप्ताधाम गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं। हम  करीब  सुबह 10 बजे तक चेनारी बाजार तक पहुँच गए थे यहाँ से हमने हरी सब्जियां व पानी की बोतलें ली और उगहनी घाट से चढाई करके 13 किमी दूर स्थित गुप्ताधाम की ओर जाने के लिए चल पड़े । उगहनी घाट के निकट ही स्थित बाबा के आश्रम में गाड़ी खड़ी करने के बाद हमने चढ़ाई शुरू की...यहाँ  कोई स्पष्ट सड़क नही है  बल्कि यह एक स्थानीय गाँव वालों के आने-जाने से बनी पथरीली पगडंडी है आपको उसी पर चढ़ कर जाना है।  डिम्पी भाई ने हम सब के लिए जंगल से लाठियाँ काट दी जिससे चढ़ना आसान हो गया।
   गुप्ता धाम की गुफ़ा तक  पहुँचने के दौरान आप दुर्गावती नदी को कई बार पार करते हैं बरसात के मौसम में इसमें काफी पानी होता है पर इस समय नदी में पानी कम था जंगल की खूबसूरती ने हम सबका मन मोह लिया था...उगहनी घाट से गुप्ताधाम के 13 किलोमीटर के रास्ते के बीच में आपको भुड़कुड़ा गाँव मिलता हैं जहाँ पानी मिल जाता है कुछ घर आपको सामान्य मूल्य पर खोआ व चाय आदि उपलब्ध करा देगें पहाड़ी गायों के दूध से बनी यह सामग्री कुछ अलग ही स्वाद देती है । लगभग  पांच पहाड़ियों की चढाई करने के बाद हम लोग सुग्गाखोह के मुहाने पर पहुंच गए... इस यात्रा में सुग्गाखोह की चढ़ाई और उतराई एक बड़ी चुनौती है सुग्गाखोह में  साखू के वृक्ष प्रमुखता से दिख रहे थे यह एक घना जंगल है जिसमें ढेरों तोते रहते हैं। सुग्गाखोह के आखिरी छोर पर ही गुप्ताधाम की गुफ़ा है... यहां पहुंचने तक हम थक कर चूर हो चुके थे...तो वहीं दुर्गावती नदी के किनारे हमनें कुछ जलपान किया और थोड़ी ही देर में गुप्ताधाम की गुफ़ा तक पहुँच गए।

 गुप्ता धाम की गुफ़ा तक पहुँचने तक शाम हो चुकी थी और हमने  गुफ़ा से नजदीक ही डिम्पी भाई द्वारा लाए गए कैम्प को लगा लिया। वहाँ से थोड़ी दूर पर एक हैंडपम्प भी था। सभी लोगों ने चूल्हा बनाना और लकड़ियां जुटाना शुरू कर दिया...थोड़ी ही देर में हमारी आग जल चुकी थी और हम सब लोग आग किनारे बैठकर खाना बनाने की तैयारी करने लगे... सुनील जी का ग्रुप भी हमारे साथ आ मिला और सबका भोजन साथ ही बनने लगा...डिम्पी भाई की पाक कला को हम सब जानते ही थे । जंगल से लाई लकड़ियों पर मदन जी ने  हाथ से बनी रोटियाँ सेकनी शुरू की वहीं हमसब ने खाना शुरू कर दिया और खाने के स्वाद को तो शब्दों में बताया ही नही जा सकता  ... जंगल के सन्नाटे में कैम्प लगाना और रात बिताना अविस्मरणीय पल था। इसी बीच मैने घन्टे की आवाज़ सुनी तो गुफ़ा के मुहाने पर पहुंच गया जहाँ आरती हो रही...नंगे पैर पत्थर पर खड़े होने पर काफी ठंड लग रही थी। आरती खत्म होने के बाद गुफ़ा में थोड़ी दूर घुसने पर देखा कि अन्दर काफी गर्मी थी जबकि बाहर अच्छी खासी ठंड थी।
   हमारे कैम्प में पाँच लोग आराम से सो सकते थे तो हमने अपना सामान भी अन्दर रख लिया और कैम्प में चेन बन्द कर सोने की कोशिश करने लगे..बहुत ठंड लग रही थी किसी तरह नींद आ ही गई..भोर में चार बजे के आस-पास कैम्प की दीवारें गीली सी हो गई थी जिससे नींद टूट गयी...डिम्पी भाई ने फिर बाहर की आग को तेज किया तो हम निकलकर आग के पास आ गए... बाहर बहुत ठंड थी लेकिन आग भरपूर थी तो थोड़ी ही देर में हमारा शरीर गर्म हो गया। पहाड़ों के पीछे से सूर्य की किरणों के आने तक हम वहीं बैठे रहे।सूर्य के उगने पर घाटी पल पल अपने रंग बदल रही थी।वहीं आग के सामने ही हमने चाय और फ्रेश होकर गुफ़ा में दर्शन की तैयारी करने लगे।
  एक बहुत उँचे से पहाड़ की तले में स्थित गुफ़ा  में शंकर भगवान का विग्रह द्वार से लगभग 200 से 250 मीटर अन्दर है जिससे वहाँ आक्सीजन की कमी रहती है अन्य मौसम में तो आप आराम से दर्शन कर सकते हैं पर बरसात के मौसम में गुफ़ा के छिद्रों में पानी भर जाने से हवा का प्रवाह कम ही जाता है और लोग बताते हैं कि दम घुटने के कारण गुफ़ा के अन्दर जाना संभव नही होता।
हमने गुफ़ा के अन्दर प्रवेश शुरू किया तो आरती का समय होने के कारण पुजारी जी भी साथ चले।गुफ़ा में  प्रकाश के लिए जेनेरेटर से बल्ब की व्यवस्था है व आक्सीजन के लिए एक मोटी सीमेंट पाईप भी गुफ़ा में ले जायी गई है। पूरी गुफ़ा में पानी रिसता रहता है। यह गुफ़ा एक कन्दरा है..भूमिगत जल के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों में सबसे महत्वपूर्ण स्थलाकृति कन्दरा है । इनका निर्माण घुलन क्रिया तथा अपघर्षण द्वारा होता है । ये ऊपरी सतह के नीचे एक रिक्त स्थान होती है तथा इनके अन्दर निरन्तर जल का प्रवाह होता रहता है । इस तरह की कन्दरा में जल के टपकने से कन्दरा की छत के सहारे चूने का जमाव लटकता रहता है, जिसे ‘स्टैलेक्टाइट’ कहते हैं । कन्दरा के फर्श पर चूने के जमाव से निर्मित स्तंभ ‘स्टैलेग्माइट’ कहलाता है । इन दोनों के मिल जाने से कंदरा स्तंभ (Cave Pillers) का निर्माण होता है ।
आपको गुप्ताधाम की गुफ़ा में हर जगह ऐसी आकृतियां मिलेंगी।
 अन्दर भगवान शिव के विग्रह तक पहुँचकर हमने आरती व पूजन किया। गुफ़ा से बाहर आकर हमने नाश्ता किया.. अब वापसी की तैयारी होने लगी तो थोड़ी दूर स्थित शीतल कुण्ड जाने का कार्यक्रम बन गया । यहाँ झरने व कुण्ड दृश्य बड़ा ही भव्य है।अब वापसी का समय था और जब वापस हम उगहनी घाट पहुँचे अन्धेरा हो चुका था व हम सभी थक कर चूर हो चुके थे तो गाड़ी में बैठकर घर आने की यात्रा शुरू हो गयी।