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मंगलवार, 9 मार्च 2021

उज्जैन यात्रा भाग-1

पिछले एक वर्ष की परिस्थिति ने हमारी रेल यात्राओं पर लगाम लगा के रखा था...इसलिए जब मौका मिला तो हमने अचानक ही सपरिवार  यह कार्यक्रम बना डाला।
   पुराणों के अनुसार  भगवान शिव जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। ये संख्या में  12 है। इनमें से हमारे उत्तर प्रदेश के एकमात्र #ज्योतिर्लिंग, बनारस में काशी विश्वनाथ जी हैं।
      मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में #महाकालेेश्वर के रूप में और दूसरा #ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के संयुक्त रूप में....और हमने यहीं जाना तय किया।

उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी या शिप्रा नदी के किनारे पर बसा है। यह एक अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। आज जो नगर उज्जैन नाम से जाना जाता है वह अतीत में अवंतिका या उज्जयिनी के नाम से जाना जाता था।
       ॐकारेश्वर  मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।यहां  ॐकारेश्वर में  नर्मदा नदी पर बने बाँध के पास दो मंदिर स्थित हैं ॐकारेश्वर व ममलेश्वर।
हमने अपनी यात्रा बनारस से शुरू की और पहले उज्जैन पहुँचे...महाकालेश्वर मन्दिर के आसपास बहुत अच्छे सामान्य बजट  के होटल उपलब्ध हैं हमने भी मन्दिर के करीब ही एक होटल चुना और  एप से  आन-लाइन नामांकन कराने के बाद तैयार होकर मन्दिर पहुँच गए। इस मन्दिर में भीड़ को संभालने व सभी को भावपूर्ण दर्शन कराने की व्यवस्था शानदार है। इस मन्दिर में आप दर्शन से संतुष्ट होंगे यह तय है।सौभाग्य से हम जब पहुँचे तब शाम के श्रृंगार व आरती का समय हो गया था और हम भव्य आरती के साक्षी  बन गए।
 यहाँ परिसर  में बहुत से मन्दिर हैं साथ ही मन्दिर ट्रस्ट की तरफ से  परिसर में ही भुगतान से प्रसाद के रूप में बेसन का लड्डू भी मिलता है जो अत्यंत स्वादिष्ट होता है। सब कुछ देखकर जब हम बाहर निकले तो मुख्य गेट के बगल में एक काउन्टर लगा था जिसमें निर्माल्य से बनी सुगन्धित अगरबत्ती मिल रही थी हमने भी ले लिया...इतनी सुगन्धित निकली कि घर आने पर लगा कि और भी लेना चाहिए था।

 रात में खाना खाकर व रबड़ी का आनंद लेने के बाद हम सोने चले गए क्योंकि सुबह फिर हमें महाकाल का दर्शन करना था और उसके बाद  ॐकारेश्वर जाना तय किया था।
  इस समय सुबह भस्म आरती में दर्शनार्थियों को अनुमति नही थी इसलिए हमने आराम से उठकर दर्शन किया और फिर वहाँ से हम हरसिद्धि माता और विक्रम टीला गए। मन्दिर के सामने स्थित रूद्रसागर कुण्ड  की हालत खराब है उम्मीद है आगे इस पर काम होगा।
  जब होटल वापस पहुंचे तो गाड़ी आ चुकी थी और हम ॐकारेश्वर के लिए चल दिए जो यहाँ से लगभग 136 किमी  दूर था।ॐकारेश्वर जाने के रास्ते में आपको ग्रामीण मध्य प्रदेश के दर्शन होते हैं।घाट की पहाड़ियों पर चढ़कर फिर उतरने के बाद आप नर्मदा नदी की घाटी में पहुँचते हैं जहाँ एक द्वीप पर आमने सामने ॐकारेश्वर व ममलेश्वर मौजूद हैं। यहाँ आपको अत्यंत  साफ स्वच्छ व निर्मल नर्मदा के दर्शन होते हैं। जब हम पहुँचे तो वह 'माघ पूर्णिमा' का दिन था तो मुझे अपना प्रिय काम यानि नर्मदा  जी में डुबकी मारना ही था...गंगा जी  के किनारे पैदा होने वाला आज नर्मदा के दर्शन व स्नान से स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा था ।
 यह स्थान अति प्राचीन विन्ध्य पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है यहाँ नदी में नर्मदेश्वर शिवलिंग मिलते हैं...हमने भी ढूंढा पर मिले नही
स्नान के बाद मैंने  घर लाने के लिए नर्मदा जी जल का जल लिया और एक बोट से हम ॐकारेश्वर के दर्शन के लिए चल दिए... आप झूला पुल से भी जा सकते हैं।भीड़ काफी थी फिर भी एक घण्टे में हमने दर्शन पा लिया। ॐकारेश्वर मन्दिर में प्राकृतिक स्वरूप के शिवलिंग हैं ... वापसी हमें बोट ने ममलेश्वर जाने के घाट पर उतार दिया... यहाँ उतनी भीड़ नही थी क्योंकि यह मन्दिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और यहाँ अनुष्ठान आदि नही होते इसलिये हमने आराम से दर्शन कर लिया...यहाँ  शिवलिंग स्वरूप भी  ॐकारेश्वर मन्दिर के प्राकृतिक स्वरूप की तरह ही हैं।
 दर्शन के बाद हम वापस उज्जैन के लिए चल दिए। 
मध्य प्रदेश के शहरों में आप जाए तो बेसन की बनी सेव नमकीन जरूर खरीदे यकीन माने गुणवत्ता शानदार होती है। उज्जैन एक साफ सुथरा शहर है और हमारा बहुत कुछ घूमना रह भी गया ...पर यह शहर आपको दोबारा बुला लेगा यह तय है।