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रविवार, 25 जून 2017

लंढोर यात्रा

लंढोर(मसूरी) यात्रा-
उत्तराखंड स्थित मसूरी के नाम से कौन परिचित नही, पर लंढोर उतना परिचित नाम नही है ।मित्र अवनीश व राकेश के साथ जब मसूरी यात्रा की योजना बनी तो मेरे मन लंढोर की योजना बन चुकी थी।12 मई 2017 को मसूरी पहुँचते ही कोहरे व बारिश ने हमारा स्वागत किया। बारिश में ही रेनकोट व छाते लेकर हम आगे बढ़े गए ...माल रोड के पहले एक रास्ता दांए उपर की ओर लंढोर की ओर जाता है हम उसी पर आगे बढ़ चले ....कुछ दूर जाते ही के घंटाघर के बाद मसूरी की चकाचौंध व ग्लैमर खत्म होने लगता है और पहाड़ों का सौन्दर्य दिखने लगता है।मसूरी से लगभग 2किमी बाद लंढोर का पुराना बाजार है उसके बाद चढ़ाई बढ़ने लगती है ।जैसे जैसे हम सीमेन्ट से बने संकरे घुमावदार रास्ते पर आगे बढ़ने लगे यह इलाका अपने सुन्दरता की परतें खोलने लगा।ओक,देवदार,चीड़,ब्लू पाईन और तमाम पहाड़ी पेड़ पौधों व फूलों की छटा ने अपना जादू सा फैला रखा था । बरसात  की हल्की फुहारों के बीच उंचाई पर फैला कुहासा व दूर तक घाटियों की हरियाली व बनते बिगड़ते बादलों ने हमें तरोताजा कर दिया ।हम मंत्रमुग्ध से आगे बढ़ते गए।बारिश तेज हुई तो हमारी रफ्तार कम हो गई ...कुछ दूर गए थे तभी एक सज्जन ने अपना कार रोकी और लिफ्ट की पेशकश की हम भी के कपड़े को लेकर संकोच में थे पर आग्रह पर बैठ गए उनके लंढोर स्थित DRDO में काम करते थे और वह मसूरी से लौट रहे थे उन्होने बताया कि इन्ही रास्तों पर रस्किन बांड,विक्टर बनर्जी,प्रणव राय,व विशाल भारद्वाज के बंगले है ।जब मैने सचिन तेन्दुलकर के बंगले के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि उनके दोस्त संजय नांरग का बंगला  भी यहीं है जहाँ वह आते हैं । DRDO का गेट आने पर हम उन्हे धन्यवाद दे उतर गए।बरसात बन्द हो गई थी तो हमने नजारे कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया ।लंढौर की खुबसूरती ने हमें बच्चा बना दिया था।

 लंढोर के इतिहास पर नजर डाले तो अंग्रेज कैप्टन यंग ने 19 वीं सदी के शुरू में इस पर अपना घर बनाया बाद में ब्रिटिश सेना की छावनी यहाँ बनी जिसमें  अब रक्षा मंत्रालय का technology and management dept चलता है ।इसी रास्ते पर सेंट पाल चर्च है जिसके ठीक सामने सड़क पर एक स्टील पट्टीका पर लंढोर कस्बे का संक्षिप्त इतिहास लिखा है ।चर्च के ही बगल में चार दुकानों का छोटा सा बाजार है जो डेढ सौ साल पुरानी हैं इन  छोटी दुकानों की सुन्दरता व सफाई शानदार है।कार वाले सज्जन ने बताया था कि यहाँ सचिन आते हैंं तो हम भी दुकान पर पहुँच गए व ब्रेड बटर के साथ चाय का आर्डर दे दिया बातचीत में शॉप मालिक ने भी  सचिन के आने की बात कही ....हम क्रिकेट के दीवानों की  तो चाय का स्वाद ही बढ़ गया भले ही मँहगी थी तो क्या?
आगे बढ़ते हुए हम लाल टिब्बा इलाके तक  पहुँच गए जो लंढोर का सबसे उपरी हिस्सा है यही सचिन का बंगला भी था।यहाँ से हिमालय की चोटियों का दृश्य सामने था जिसे बादल ढ़क दे रहे थे।
    अब दोपहर हो चुकी थी हमने वापस लौटना शुरू किया ।वापसी में हमने लंढोर की सफाई पर गौर किया कही फेंकी हुई पालिथीन नही ...जगह -जगह स्टील के डस्टबिन । लंढोर की यात्रा हमें सिखाती है कि प्रकृति को समझो अगर हम इसकी शर्तों न नैसर्गिकता के साथ तालमेल बैठा कर रहेगें तो यहीं स्वर्ग है ।अगर लंढोर में प्रवेश करते ही यहाँ की हरियाली मन मोह लेती है और  तनाव उड़नछूँ हो जाता है तो शायद इसीलिए कि यहाँ प्रकृति से छेड़छाड़ नही की गई है ।अगर लंढोर के लोग चाहते तो यहाँ भी मसूरी की तरह बाजार बन जाते ग्लैमर दिखने लगता पर असली प्रकृति गायब हो जाती और फिर हम लंढोर के  शांत प्रकृतिक संगीत से महरूम हो जाते।
   तो अगली बार जब queen of hill's मसूरी आईए तो उसकी fairer princess लंढोर जरूर आइए और हो सके तो मसूरी से पैदल आकर यहाँ प्रकृति की उस शान्ति को महसूस करिए जो सालों साल आपको याद रहेगी।
 लंढोर में सड़क पर




 लंढोर से मसूरी शहर
मित्र अवनीश 


 लंढोर की शानदार साफ सड़के





 चाय की दुकान जहाँ अक्सर सचिन आते हैं


 सेंट पाल चर्च


लंढोर की इतिहास पट्टिका

लंढोर से घाटी में बनते बादल