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रविवार, 9 अक्टूबर 2016

यात्रा वृतान्त - मेरी केदारनाथ व् बद्रीनाथ यात्रा


मेरी केदारनाथ व बद्रीनाथ यात्रा

१-यात्रा की तैयारी--

  केदारनाथ जाने की इच्छा तो बहुत दिनों से थी |उत्तराखंड में  2013 में हुई त्रासदी के बाद से डर तो बढ़ा पर मन में जाने की इच्छा और प्रबल हो गयी थी| अंतिम निर्णय तब लिया जब जून  2015  में वहाँ से  लौटे एक मित्र से वहाँ का वर्णन सुना | फरवरी  महीने से ही अपनी आदत अनुसार मैंने जानकारी जुटानी शुरू कर दी और मई  2016  महीने के अंतिम सप्ताह में जाने का तय हो गया |अब मैंने साथ के लिए सेतु निगम में काम करने वाले सोनू भाई से बात की जो तुरन्त तैयार हो गए | सोनू वैसे उम्र में मुझसे छोटा है और मुझे भैया ही कहता है पर मै मित्रवत ब्यवहार ही रखता हूँ इस यात्रा के प्रति उसके उत्साह को देखते हुए ही मैंने उससे कहा | सारा कुछ तय हो जाने के बाद ही मैंने 24 मई को वाराणसी से हरिद्वार और 31मई को हरिद्वार से वाराणसी के लिए ट्रेन टिकट बुक कर ली | दो धाम केदारनाथ और बद्रीनाथ के  लिया 5 दिन पर्याप्त लगा और बाद में यह आकलन सही भी सिद्ध हुआ चार धाम के लिए 9 दिन पर्याप्त है | नीरज जाट जी से भी ई मेल से बात जिससे ट्रिप प्लान करने में मदद मिली | वैसे सच कहूँ तो मेरे लिए  यह ट्रिप धार्मिक से ज्यादा एडवेंचरस थी | मैंने तैयारियां शुरू कर दी इसी बीच मैंने इस ट्रिप की चर्च अपने बचपन के मित्र  और मेरे कई ट्रिप के साथी अमृत जी से कि, तो वो भी तैयार हो गए और मैंने उनकी टिकट भी बुक करवा दी |अब बारी थी घरवालों को धीरे धीरे बताने कि, क्योंकि त्रासदी के बाद वहाँ जाने के खिलाफ पूरा घर था खैर सकारात्मक बातें करते हुए मैंने सभी को संतुष्ट कर दिया फिर भी श्रीमती जी के अन्दर के डर को मै समझ पा रहा था | सच कहूँ तो मन मस्तिष्क पर त्रासदी की तस्वीरें छायी हुई थी और अपने 1.5 साल के बेटे को देखकर मन में तमाम बातें आने लगी थी पर मैंने उन सबसे पर पा लिया जाने के उत्साह ने सभी आशंकाए समाप्त कर दी | जाने की तारीख नजदीक आने पर मैंने सोनू व् अमृत जी आवश्यक सामानों की लिस्ट थमा दी जिसमें रेनकोट जैसी चीजें शामिल थी | हम जब भी मिलते जाने सम्बन्ध में कुछ बाते जरुर होती |सोनू जी को छुट्टी की समस्या जरुर थी पर हमेशा मुझे आश्वस्त करते  था कि वह किसी कीमत पर चलेगें | मैंने भी अपने तमाम कामों को इस तरह सेट करना शुरू किया कि जाने में कोई दिक्कत न हो |


 2- सैदपुर से वाराणसी [24/05/2016]-
24 मई को सुबह से हम तैयारी में लगे थे | मेरा अनुभव यह है कि इन यात्राओं में सामान कम से कम रखे लेकिन जहाँ जा रहे हैं वहा के मौसम के हिसाब से पैकिंग जरुर करे|टार्च,थोड़ी दवाये,ड्राई फ्रूट्स,चने और सबसे जरुरी जहाँ जा रहे हैं वहाँ का नक्शा होना ही चाहिए | बीच-बीच में अमृत जी व् सोनू से फोन पर बातचीत भी हो रही थी| सैदपुर से वाराणसी 40 किमी है बस से आराम से 1 घंटे में पहुंचा जा सकता है और हमारी ट्रेन रात में 1.50 पर थी तो हमने खाना-वाना खाकर घर से 8  बजे निकलना तय किया | शाम को जाने के पहले मित्रों से मिलने गया तो उन्होंने केदार जी व्  बद्रीनाथ जी के यहाँ चढ़ावे के लिएकुछ धनराशि भी  दी जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया| 8 बजे के करीब सोनू से बात हुई तो सैदपुर बस स्टैंड पर मिलने की बात हुई अमृत जी को भी मैंने फोन करके वही बुला लिया| 8.25 पर मै व् सोनू बस स्टैंड पहुँच गए वहाँ मेगा स्क्रीन पर आर.सी.बी. व् गुजरात लायंस का क्वालीफायर मैच चल रहा था हम भी मजे से देखने लगे बीच बीच में क्रिकेट के  नए नए कीड़े मेरे भतीजे हर्ष का फोन भी आ रहा था आर.सी बी. उसकी फेवरेट टीम जो थी इस
बार वाकई में विराट ने आईपीएल में गजब की परफोर्मेंस दी थी | थोड़ी देर बाद ही अमृत जी भी आ गए और हम अगली बस आते ही उसमें चढ़ गए| फिर वह हुआ जिससे  कि वाराणसी तक कि यात्रा मनोरंजक हो गयी |एक स्टोपेज पर कुछ जनाब लोग बकरियाँ लेकर चढ़ गए कंडक्टर ने कुछ हुज्जत की फिर मान गया|रस्ते भर उनकी गतिविधियाँ देखने में ही समय कट गया| हम करीब 10.10 पर वाराणसी पहुचे|उपासना एक्सप्रेस का समय 1.55 था तो हमारे पास काफी समय था तो अमृत जी ने आई.पी. मॉल में एक्स मैन देखने की बात की और सभी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी |फिर क्या था हम सभी ने क्लॉक रूम में सामान रखा और टिकट लेकर थियेटर में हाजिर हो गए| आई.पी.मॉल.सिगरा वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से 2-3 किमी पर है | 12.40 पर थियेटर से निकल कर ऑटो करके  15  मिनट में हम वाराणसी कैंट स्टेशन पहुँच गए| उपासना एक्सप्रेस प्लेटफार्म 5 पर आनी थी तो हम भी प्लेटफार्म पर पहुंचे |थोड़ी देर ही में ट्रेन आ गयी बस एक दिक्कत थी मेरी व् सोनू की बर्थ ए.सी.3 टियर में थी व् अमृत जी की स्लीपर क्लास में .....कंफ़र्म टिकट के लिए ऐसा करना पड़ा था |खैर हम अपने कोच में पहुंचे सामान लॉक करने के बाद अमृत जी को फोन किया तो वो भी अपनी सीट पर जम चुके थे हम लोग खाना घर से खा के ही आये थे तो मैंने कोच की लाइट्स जलने तक कुछ लिखा फिर जल्द ही हम दोनों पसरकर सो गए|


3-ट्रेन से वाराणसी से ऋषिकेश वाया हरिद्वार[25/05/2016]-
    सुबह उठाते ही सबसे मैंने अमृत जी को फोन किया तो बेचारे परेशान थे सहयात्रियों के शोर व् गर्मी  ने उन्हें सोने नहीं दिया था |मैंने टी. सी.से बात की तो वह अपग्रेड के लिए तैयार हो गए और अमृत जी साथ आ गए| करीब  शाम 4 बजे हम हरिद्वार उतरे तो हमने ऋषिकेश जाना तय किया| स्टेशन से बाहर आने पर तमाम ऑटो वाले ऋषिकेश जा रहे थे| हमारे ग्रुप के खाने के शौक़ीन व् भोजन प्रभारी अमृत जी ने चाट खाने का प्रस्ताव रखा हम सभी ने शानदार चाट खाकर ऋषिकेश के लिए ऑटो पकड़ लिया| करीब एक घंटे में हम ऋषिकेश पहुँच गए रास्ते में हमें एक ओवर ब्रिज बनता दिखा जो राजा जी  नेशनल पार्क को ट्राफिक से सुरक्षित करेगा| हम शाम 5.30 पर ऋषिकेश टैक्सी यूनियन के पास पहुंचे| मेरे पास वहाँ का फोन नंबर था तो  मैंने यात्रा हेतु टैक्सी बुक करने के लिए फोन किया  तो उन्होंने एक घटें के बाद आने के लिए कहा । वही बगल से हमें एक रास्ता गंगा नदी की तरफ जाता दिखा तो हम उधर ही चल दिये राम घाट करीब आने पर हमें जयराम अन्न क्षेत्र ट्रस्ट का गेट दिखाई दिया तो हम कमरे की उम्मीद में अन्दर प्रवेश कर गए| अन्दर से शानदार भवन था  | ऑफिस में संपर्क करने पर एक डबल बेड  कमरा मिल गया चार सौ रुपये में साथ में एक अतिरिक्त गद्दा भी ले लिया हमने अब अगले पांच मिनट में हम कमरे में थे| कमरा ठीक ठाक था रुकने के हिसाब से अच्छी जगह है यह |यहाँ ए.सी. कमरे भी हैं बड़े ग्रुप ज्यादा रुकते हैं यहाँ | शांत वातावरण व् राम घाट के किनारे की स्थिति  इसको खास बना देती है|चारो तरफ कमरे और बीच में बड़ी सी खाली जगह सुविधाजनक है |कमरे में जाते ही हम फ्रेश हुए क्यों कि  आफिस में बताया गया था की  राम घाट की आरती जरुर देखें पर जब हम 8 बजे तक राम घाट पर पहुंचे तब तक आरती समाप्त हो चुकी थी आरती का समय गर्मियों में 7 बजे का है पर गंगा के किनारे लगी रौशनी व्  कल कल करके बहती माँ गंगा में बनती उसकी छवि ने हम पर जादू कर दिया| सोनू तो नहाने को तैयार थे पर पानी ठंडा होने के नाते हमने उसे रोक दिया हम घंटो वही पानी में पैर डाल  कर बैठे रहे फोटो खीचते रहे,किसी का भी वहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा था पर अब हमें भूख लगने लगी थी भोजन प्रभारी महोदय ने चलने की घोषणा की और हम  चल दिए उनके पीछे ...| पहले हम ऋषिकेश टैक्सी यूनियन के आफिस गए वहाँ हमने 15000 रुपये  में दो धाम (केदारनाथ व् बद्रीनाथ) के लिए टैक्सी बुक की और अपने ड्राईवर चन्द्रमोहन जी से मिले व् उनसे फोन नंबर का लेन देन कर सुबह 7 बजे जयराम ट्रस्ट आने की बात कह खाना खाने चल दिए | अमृत जी पारखी नजरों ने एक सरदार जी दूकान खोज ही ली फिर क्या था कुछ देर बाद ही  सरदार जी अमृत जी मित्रवत  हो चुके थे और हमें मिला एक शानदार चटपटा  भोजन | करीब 10 बजे तक हम कमरे में वापस आ चुके थे तभी सोनू ने सामने स्थित राम घाट पर फिर टहलने की बात कही तो मै और सोनू 50 मीटर दूर रामघाट पर चल दिए और अमृत जी नीद के आगोश में| हम एक घंटे में वापस आये और सो गए|

जयराम अन्नक्षेत्र ट्रस्ट का मुख्य द्वार 



त्रिवेणी घाट का परिचय 

आरती के बाद त्रिवेणी घाट पर 

मंगलवार, 8 मार्च 2016

महिला सशक्तिकरण पर एक संस्मरण...

       

महिला सशक्तिकरण पर एक संस्मरण...



अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर आज कई जगह कार्यक्रम आयोजित हैं | कई जगहों से निमंन्त्रण भी है.....पिछले साल भी ऐसे कई कार्यक्रमों गया था जहाँ वक्ताओं ने महिला सशक्तिकरण के उदाहरण पेश किए....उपाय बताए|.....
पर आज मैं अपना संस्मरण लिखना चाहूँगा....दस साल के ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी विद्यालय के शिक्षकीय जीवन में जब अनुभवों से शिक्षकीय सरलता बढ़ी तो बच्चों के मनोविज्ञान का भी ज्ञान बढता गया.....तो उसका फायदा यह हुआ कि शिक्षण प्रक्रिया में दण्ड का प्रयोग नगण्य हो गया ...अब साब हालत यह है कि बच्चे लोग बाकायदा डिमाण्ड रखने लगें हैं ......अपनी बात कहने लगें है....| तो घटना यह है कि बच्चे लोग कई दिन से खेल के नए सामानों की जिद कर रहे थे ....लडकियों की माँग बैडमिन्टन की थी तो लड़कों की फुटबाल की.........| तो साब माँग के आगे झुकना पड़ा और सामान आ गया| बच्चे अपने अपने सामानों से रोजे खेलने लगें .....पर इसी बीच हुआ यह कि लड़कों ने बैडमिन्टन पर भी हाथ अजमाना शुरू किया....तो लडकियों ने भी फुटबाल पर दावा पेश किया..... जिसे लड़कों ने हँसकर......मजाक उड़ाने के भाव में यह कहकर उड़ा दिया कि ...लडकियाँ और फुटबाल ...खेल ही नहीं सकती.....|जब लडकियों कि तरफ से विरोध बढने लगा तो हस्तक्षेप करना पड़ा.......तय यह हुआ कि लडकियाँ भी शनिवार को आधा घण्टा खेलेगीं ...तो ..शुरू में तो उन्होंने कुछ हिचकिचाहट दिखाई पर धीरे धीरे .....खेल अच्छा होने लगा...पर साब क्लाईमेक्स तो अभी बाकी है.....हुआ यह कि एक दिन लड़कों ने अपने दम्भ में आकर लडकियों को चैलेन्ज कर दिया .......कुछ हिचक के साथ मैनें भी हामी भर दी |मैच शुरू हुआ .लड़कों ने बढत भी ले ली| दर्शक लड़को ने तो शोर करके मामला लड़के बनाम लड़कियाँ कर दिया ......लडकियों के चेहरे पर एक अजीब भाव दिखा मुझे मैनें पाँच मिनट के लिए खेल रोका व उन्हे अपनी समझ भर कुछ सुझाव दिए..|खेल फिर शुरू हुआ ....तो साब ज्यादा उम्मीद तो मुझे भी नही थी ..पर यह क्या? लडकियों का दौड़ना देखते बनता था| कुछ देर में तो हालत यह हो गई कि लड़के तो बाल ही नही पा रहे थे ...देखते देखते स्कोर भी बराबर हो गया ....अब दर्शक लडकियों ने भी शोर मचाना शुरू कर दिया......लड़के तो चुप से ही हो गए थे.......खिलाड़ी लड़कों मे आपसी झगड़े भी शुरू हो गए.....तो साब नौबत ये आ गयी कि मुझे बीच में आकर मैच ड्रा घोषित करना पड़ा...
थकी हाँफती लड़कियाँ के चेहरे पर एक अलग तरह की चमक थी मानों कह रही हों ....हमें कम मत आँकना....
....पर करते है हम ऐसी गलती...
उन्हे कमजोर मानने की,...करते हैं हम झूठी बातें उन्हे सशक्त बनाने की,
पर असल में डरता है पुरूष....उनकी समायोजन की ताकत से,उनकी सहनशीलता की क्षमता से,उनकी करूणा न क्षमाशीलता की शक्ति से ......इसलिए करता है नाटक भरे तमाम प्रयोजन|
सच्चाई यह है कि हम असक्त उन्हे क्या सशक्त बनाएँगें .....बस उन्हे एक सुरक्षित आकाश चाहिए जहाँ....वह उड़ सके अपने सपनों के साथ....