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शनिवार, 11 जुलाई 2015

जनसंख्या दिवस

सन् 1987 में जब दुनियाँ की आबादी पाँच अरब के पार हुई तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने चिन्ता जाहिर करते हुये बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाने एवं जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 11 जुलाई 1987 से प्रतिवर्ष विश्व जनसंख्या दिवस मनाने का निर्णय लिया |आज हमारे देश की आबादी सवा सौ करोड़ के आस पास है प्रति वर्ष एक आस्ट्रेलिया  के बराबर बढ़ जाते हैं हम और एक अनुमान के अनुसार 2030 तक जनसंख्या के मामले में हम विश्व में प्रथम स्थान पर होगें|देश की  यह बढती हुई जनसंख्या हमारे प्राकृतिक  संसाधनो पर अत्यधिक दबाव डाल रही है तथा सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाएँ बढ़ती  जनसंख्या के दबाव के आगे बौनी साबित हो रही हैं|अगर ऐसा ही होता रहा तो यह बढ़ती हुई जनसंख्या,जिसका बडा हिस्सा युवाओं का है यह हमारे देश के विकास की जगह विनाश का कारण बनेगी क्योंकि युवाओं की बढ़ती हुई आबादी को शिक्षा स्वास्थ्य व रोजगार की सुविधाएँ चाहिए | पर सच्चाई यह है कि आज हमारे इन युवाओं का एक बड़ा हिस्सा बेरोजगार है और यह  बेरोजगार युवा अपराध और नशे की तरफ अग्रसर हो रहा है, देश में पैदा हो रहे साठ प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित हैं | इस तरह हम देख रहे हैं कि हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या देश की प्रगति और विकास में बाधक बनती जा रही है अतःहम चाहते हैं कि जनसंख्या विस्फोट की इस खतरनाक स्थिति से हम स्वयं निपटे। एक या दो बच्चे होते सबसे अच्छे। हमारा परिवार जितना छोटा होगा, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य की उचित व सही देखभाल होगी। समृद्ध परिवार समृद्ध देश।

गुरुवार, 4 जून 2015

हमारा पर्यावरण :एक परिचय


   ५जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक मौका है पर्यावरण को समझने का| पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के 'परि' उपसर्ग
(चारों ओर) और 'आवरण' से मिलकर बना है
जिसका अर्थ है ऐसी चीजों का समुच्चय जो
 किसी व्यक्ति या जीवधारी को चारों ओर से आवृत्त किये हुए हैं। अपने परिवेश में हम तरह-तरह के  सजीव-निर्जीव वस्तुएँ पाते हैं। ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं।
     वायु, जल तथा भूमि निर्जीव घटकों में आते हैं जबकि जन्तु तथा पादपों से मिलकर सजीवों का निर्माण होता है। इन संघटकों के मध्य एक महत्वपूर्ण रिश्ता यह है कि अपने जीवन-निर्वाह के लिए परस्पर निर्भर रहते हैं और इसी निर्भरता पर  पर्यावरण सन्तुलन भी निर्भर है|

   जीव-जगत में मानव सबसे अधिक संवेदनशील प्राणी है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह अन्य जीव-जन्तुओं, पादप, वायु, जल तथा भूमि का दोहन करता है| अतः ज्यादातर पर्यावरणीय समस्याएँ पर्यावरणीय
अवनयन और मानव जनसंख्या और मानव द्वारा
संसाधनों के उपभोग में वृद्धि से जुड़ी हैं।
पर्यावरणीय अवनमन की बात करें तो इसके अंतर्गत पर्यावरण में होने वाले वे सारे परिवर्तन आते हैं जो अवांछनीय हैं और किसी क्षेत्र विशेष में या पूरी पृथ्वी पर जीवन के सन्तुलन को खतरा उत्पन्न करते हैं।
   इसके अंतर्गत प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव
विविधता का क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि शामिल की जाती हैं। पर्यावरणीय अवनमन के साथ जनसंख्या में चरघातांकी दर से हो रही वृद्धि तथा मानव द्वारा अतिउपभोग की लोलुपता,लगभग सारी पर्यावरणीय समस्याओं के मूल कारण हैं।    
    प्राकृतिक संसाधनों का मनुष्य द्वारा अपने आर्थिक लाभ हेतु इतनी तेजी से दोहन किया जा रहा है कि उनका प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्भरण (replenishment) नही
हो पा रहा है और इसके लिये जनसंख्या का दबाव तथा विकास का अवैग्यानिक माडल जिम्मेदार है|

मंगलवार, 26 मई 2015

गंगा निर्मलीकरण व् जन सहभागिता


 १-गंगा की यात्रा -                                               राघवेन्द्र कुमार मिश्र 


माँ गंगा हिमालय की गोद से निकलकर बंगाल की कड़ी में मिलने के दौरान लगभग चालीस करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष व् अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित करती है|  गंगा नदी हिमालय से निकली अनेक छोटी-बड़ी नदियों के मिलने से बनती हैं इसमें प्रमुख नदी भागीरथी है जो हिमालय के गोमुख नामक  स्थान पर, गंगोत्री हिमनद से निकलती है| यह स्थान गंगोत्री तीर्थस्थल से १९ किमी उत्तर में है|
  देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है और यही इन दोनों नदियों की सम्मिलित जलधारा गंगा नदी के नाम से जानी जाती है|
 देवप्रयाग से चलकर गंगा ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार पहुँचती हैं| यहीं गंगा पहाडों से उतरकर मैदान का रुख करती हैं|
 हरिद्वार से चलकर गंगा अनेक छोटे-बड़े शहरों जैसे- गढ़मुक्तेश्वर, कन्नौज, कानपुर आदि से होते हुए इलाहाबाद पहुँचती है जहाँ उनका यमुना से संगम होता है| इस स्थान को तीर्थराज प्रयाग भी कहा जाता है और यहीं पर विश्व प्रसिद्ध कुम्भ का मेला लगता है|
 यहाँ से गंगा वाराणसी, सैदपुर, पटना व् भागलपुर होते हुए और कई नदियों जैसे घाघरा,वरुण,गोमती,कोसी,सोन आदि से संगम करती हुई प.बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया नामक स्थान पर पहुँचती हैं जहाँ से यह दो शाखाओं में बंट जाती हैं|  १-भागीरथी     २-पदमा
  इसमें भागीरथी नदी, हुगली शहर से होकर, सुंदरवन का डेल्टा बनाते हुए
बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं यही पर गंगासागर तीर्थस्थल है|
गंगा के उपहार-

 आपने देखा की गंगा हिमालय से निकलकर, करीब ढाई हजार किलोमीटर (२५१५)की यात्रा के बाद बंगाल की खाड़ी से मिलती हैं और अपनी इस यात्रा के दौरान माँ गंगा लगभग चालीस करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुँचाती है|
 प्रत्यक्ष लाभ यानि वह लाभ जो हमें दिखता है जैसे-... गंगा किनारे किसान सब्जियों की खेती करते है,खीरा,ककड़ी,तरबूजा,लौकी आदि उगाते हैं |गंगा से निकली नहरें दूर दूर तक के खेतों की सिचाई करती हैं
मछुआरे मछली मारकर व् नाव चलाकर अपनी रोजी रोटी चलाते हैं|गंगा द्वारा लाया गया बालू हमारे घर बनाने के काम आता है|
  पर कुछ ऐसे भी फायदे हैं जो होते तो हैं पर दिखते नहीं हैं जैसे- गंगा व् उसकी सहायक नदियाँ,बरसात के मौसम में आये अधिक पानी को समुद्र तक पहुँचाती हैं
  गंगा अपने आस पास के भूमिगत जलस्तर को बनाए रखती है जिससे हमें साल भर पीने का पानी मिलता है,गंगा के किनारे बसे कई धर्मिक शहर जैसे वाराणसी ,इलाहाबाद आदि, अपनी अर्थब्यवस्था के लिए गंगा पर निर्भर हैं | माँ गंगा ने अपने अन्दर अनेक जीवों जैसे- घड़ियाल,कछुए ,सूँस व् मछलियों आदि को आश्रय दे रखा है जो पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं |
  अगर हम गंगाजल की विशेषता की बात करें तो आप ने भी सुना और देखा होगा कि गंगा का पानी बोतल में भरकर रखने पर भी बहुत दिनों तक खराब नहीं होता और इसमें रोज नहाने से व्यक्ति निरोग रहता है|वैज्ञानिको इस पर प्रयोग किया तो पाया कि, गंगा के पानी में बैक्टेरिओफेज नामक विषाणु पाया जाता है जो जीवाणुओं व् हानिकारक सूक्ष्मजीवों को मार देता है ...अब यह गुण गंगा के पानी में कहाँ से आता है यह अभी भी खोजा जा रहा है पर अनुमान लगाया जाता है की हिमालय से आने दौरान गंगा के पानी का औषधीय पौधों और खनिज पत्थरों से संपर्क होता है जिससे उसके पानी में यह गुण आ जाता है |
गंगा की दुर्दशा के कारण-

अब देखते हैं कि जिस माँ गंगा के पानी में इतने गुण हो, ...जो हमें इतने फायदे दे रही हो ...हम उसे क्या दे रहे हैं? किसी भी नदी के लिए उसमें जल की मात्रा व्  अविरल प्रवाह बने रहना बहुत जरुरी है पर तमाम उद्योगों व् बांधो से गंगा का अविरल प्रवाह बाधित हो रहा है साथ ही हम उसमें    कचरा,प्लास्टिक, पुराने कपडे, राख,रसायनयुक्त मूर्तियाँ,घरों से निकला मलमूत्र, नालों का पानी, जानवरों की लाश और तो और, श्रद्धा के नाम पर पालिथिन में बांधकर फूल,फल,फ़ोटो,व् अगरबत्ती के खोखे आदि भी माँ गंगा में डालते हैं|
 एक आकड़ें के अनुसार पुरे देश में प्रतिवर्ष १२०० करोड़ लीटर सीवर का पानी गंगा में जाता है जिसमें से केवल ४०० करोड़ लीटर ही साफ़ किया जाता है|
 लेकिन अब माँ थक चुकी है हमारी लापरवाही से माँ गंगा की की निर्मलता खतरे में पड़ चुकी है हमारे बचपन की गंगा का झलकता पानी आज गर्मियों में बदबू मारने लगता है| बांधो के बनने से गंगा में पानी कम हो गया है जिससे गर्मियों में गंगा घाटों से दूर हो जाती हैं |
  गंगा के पानी का यह हाल है कि पीना तो छोडिये आचमन करने लायक नहीं रह गया है इसके पानी में वह फिकल कोलीफार्म पाया जाने लगा है जो मल  में पाया जाता है2 सूंस या गंगा डालफिन तो देखने को नहीं मिलती |
पेड़ों के कटने से गंगा में मिटटी या गाद जमा हो गयी है जिससे बरसात में बार बाढ़ आकर हमारा नुकसान करती है| गंगा के आस पास के गाँवों में तालाब,पोखरे कम होने व् पेड़ों के कटने से  गंगा के अपने जलश्रोत सूख़ गए | माँ गंगा की सफाई के नाम पर अब तक लगभग २०००० करोड़ रुपये खर्च हो पर हालत ज्यादा नहीं सुधरी है |
गंगा के पुनर्जीवन के उपाय-

 यदि माँ गंगा को हमें बचाना है तो इसे केवल नदी न मानकर बल्कि  चालीस करोड़ लोगों की जीवनरेखा मानना होगा| इसके उद्धार के लिए हम सब  को  जागरूक होना होगा ताकि हमारी जीवनदायिनी माँ गंगा की अविरलता व् स्वछता बनी रहे और हमारी आने वाली पीढियां भी माँ गंगा की अमृतधारा का अनुभव कर सकें | गंगा निर्मलीकरण अभियान के प्रयास को हम दो भागों में बांटकर देख सकते हैं |
१-सामूहिक प्रयास –
  इसके अंतर्गत हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं
(क)       हम अपनी केंद्र सरकार,राज्य सरकार, नगर निकायों व् ग्राम सभाओं को प्रेरित या मजबूर करें कि वह अपनी विकास योजनाओं में गंगा प्रदूषण का ध्यान रखें |
(ख)      गंगा पर किसी भी नए बाँध की अनुमति न दी जाए और पुराने बांधो से भी वर्ष भर गंगा नदी  में पर्याप्त जल छोड़ा जाए जिससे गंगा में स्वयं खुद को साफ़ करने की क्षमता आ जाये  |
(ग)        गंगा बेसिन क्षेत्र में वृक्ष लगायें जाय,तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए| रेन वाटर हार्वेस्टिंग व् ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग योजनाओं को बढ़ावा दिया जाए जिससे गंगा के अपने सोते खुल जाये|

(घ)        हम अपने नगर निकायों पर दबाव डालें या उन्हें प्रेरित करे की कोई भी नयी सीवर लाइन गंगा में न डाली जाये व् पुरानी सीवर लाइनों के सीवेज को शुद्धिकरण के बाद ही गंगा में डाला जाय
(ङ) सभी नगर निकायों  में  सीवर शुद्धिकरण प्रणाली की स्थापना की जाए और उसके शोधित जल  का सिंचाई में उपयोग किया जाए |
(च)         नगर के सभी घाटों और सभी वार्डों में जैविक सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया जाए |
(छ)       गंगा के किनारे अवैध निर्माणों पर सतत निगरानी व् रोक लगायी जाए |
(ज)       गंगा के जल ग्रहण क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण किया जाये जिससे नदी में जल की मात्रा बढ़ सके|
                                                      २-व्यक्तिगत प्रयास-
हम भी चाहे तो कुछ बातों का ध्यान रखकर माँ गंगा को साफ़ रखने में अपना हाथ बंटा सकते हैं|
१-     मूर्तियाँ,फूलमालाएं,पुराने कैलेण्डर, हवन की राख व् पूजा पाठ की बची अन्य सामग्री गंगा में न डालकर मिटटी में गाड़ें
२-     पालिथीन, पुराने कपड़े, कूड़ा-कचरा माँ गंगा में न डालें |
३-     मृत पशुओं को माँ गंगा में न फेंककर मिट्टी में गाड़ें|
४-     गंगा किनारे शौच कर, माँ गंगा का अपमान न करें
५-     गंगा में नहाते समय साबुन ,डिटर्जेंट आदि का प्रयोग करने से बचें |
६-     गंगा के किनारों पर वृक्ष लगाकर माँ गंगा का संरक्षण और सुन्दरीकरण करें|                                                            
       अतः आए हम यह संकल्प ले कि हम भी गंगा निर्मलीकरण की इस योजना में अपना योगदान देंगे | 




गोमुख से निकलती भागीरथी

गोमुख से लगभग १९ किमी बाद गंगोत्री 


इलाहाबाद संगम 

हरिद्वार हर की पौड़ी 

वाराणसी के घाट 

वाराणसी  गंगा आरती 


गंगा डेल्टा सुंदरवन क्षेत्र 

गंगा सागर